________________
जैन शतक
बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के १० भव क्रमशः इसप्रकार हैं:
१. वन में भील, २. अभिकेतु नामक सेठ, ३. सौधर्म स्वर्ग में देव, ४. चिंतागति विद्याधर, ५. चौथे स्वर्ग में देव, ६. अपराजित राजा, ७. अच्युत स्वर्ग में इन्द्र, ८. सुप्रतिष्ठ राजा, ९. जयन्त विमान में देव, १०. नेमिनाथ ।
५५. श्री पार्श्वनाथ के पूर्वभव
(सवैया) विप्रपूत मरुभूत विचच्छन, वज्रघोष गज गहन मँझार। सुरि, पुनि सहसरश्मि विद्याधर, अच्युत स्वर्ग अमरि-भरतार ।। मनुज-इन्द्र, मध्यम ग्रैवेयिक, राजपुत्र आनन्दकुमार। आनतेंद्र, दशव॑ भव जिनवर, भये पार्श्वप्रभु के अवतार ॥८६॥ तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के १० भव क्रमशः इसप्रकार हैं:
१. मरुभूति नामक विद्वान् ब्राह्मण, २. वन में वज्रघोष नामक हाथी, ३. देव, ४. सहस्ररश्मि विद्याधर, ५. सोलहवें स्वर्ग में देव, ६. चक्रवर्ती, ७. मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र, ८ आनन्द राजा, ९. आनत स्वर्ग में इन्द्र, १० पार्श्वनाथ।
५६. राजा यशोधर के भवान्तर
(सवैया) राय यशोधर चन्द्रमती पहले भव मंडल मोर कहाये। जाहक सर्प, नदीमध मच्छ, अजा-अज, भैंस, अजा फिर जाये। फेरि भये कुकड़ा-कुकड़ी, इन सात भवांतर मैं दुख पाये। चूनमई चरणायुध मारि, कथा सुन संत हिये नरमाये ॥८७ ।।
राजा यशोधर और रानी चन्द्रमती ने आटे के मुर्गे की बलि देने के कारण क्रमश: इन सात भवों में अपार कष्ट सहन किये :- १. मोर-मोरनी, २. सर्पसर्पिणी, ३. मच्छ-मच्छी, ४. बकरा-बकरी, ५-भैंसा-भैंस, ६. बकरा-बकरी
और ७. मुर्गा-मुर्गी । ज्ञानी पुरुष उनकी कहानी सुनकर अपने हृदय में बहुत वैराग्य उत्पन्न करते हैं।
१. पाठान्तर : पासप्रभु