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जैन शतक
(कवित्त मनहर) जौलौं देह तेरी काहू रोग सौं न घेरी जौलौं,
जरा नाहिं नेरी जासौं पराधीन परिहै। जौलौं जमनामा वैरी देय ना दमामा जौलौं, . मात्रै कान रामा बुद्धि जाइ ना बिगरि है॥ तौलौं मित्र मेरे निज कारज सँवार ले रे,
पौरुष थकैंगे फेर पीछे कहा करिहै। अहो आग आ3 जब झौंपरी जरन लागी,
कुआ के खुदामैं तब कौन काज सरिहै ॥२६॥ हे मेरे प्रिय मित्र! जब तक तुम्हारे शरीर को कोई रोगादि नहीं घेर लेता है, पराधीन कर डालनेवाला बुढ़ापा जब तक तुम्हारे पास नहीं आ जाता है, प्रसिद्ध शत्रु यमराज का डंका जब तक नहीं बज जाता है, और बुद्धि रूपी पत्नी जब तक तुम्हारी आज्ञा मानती है, बिगड़ नहीं जाती है; उससे पहले-पहले तुम
आत्मकल्याण अवश्य कर लो, अन्यथा बाद में तुम्हारी शक्ति ही क्षीण हो जावेगी, तब क्या कर पाओगे? कुआँ आग लगने से पहले ही खोद लेना चाहिए। जब आग लग जाए और झोंपड़ी जलने लगे, तब कुआँ खुदाने से क्या लाभ ? ।
विशेष :-यहाँ कवि ने आग लगने पर कुआँ खोदने' वाली उक्ति का प्रयोग करके तो काव्य में चमत्कार तो उत्पन्न किया ही है, शीघ्र आत्मकल्याण करने की प्रेरणा भी अत्यधिक प्रभावपूर्ण ढंग से दी है।
(कवित्त मनहर) . सौ. हि वरष आयु ताका लेखा करि देखा जब',
. आधी तौ अकारथ ही सोवत विहाय रे। आधी मैं अनेक रोग बाल-वृद्ध दशा भोग,
और ह सँयोग केते ऐसे बीत जाँय रे॥ बाकी अब कहा रहीं ताहि तू विचार सही,
कारज की बात यही नीकै मन लाय रे। खातिर मैं आवै तौ खलासी कर इतने मैं,
भावै फँसि फंद बीच दीनौं समुझाय रे ॥२७॥ मनुष्य की आयु सामान्यतः सौ वर्ष बताई जाती है; परन्तु यदि इसका हिसाब लगाकर देखा जाये तो आधी आयु तो सोने में ही व्यर्थ चली जाती है। रही मात्र १. पाठान्तर : सब।