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विशेषताओं व पूजा पद्धतियों के कारण और भी पंथ बने परंतु गहराई में देखें तो वास्तव में ये पंथभेद भी बाह्य रूप के आधार पर हैं, अंतरंग रूप में सभी एक हैं। वर्तमान में दिगंबर संप्रदाय में निम्नलिखित तीन प्रमुख पंथ विद्यमान हैं
(1) तेरापंथ (2) बीसपंथ (3) तारणपंथ
तेरापंथ के अनुयायी पूजन-अभिषेक आदि अनुष्ठानों में सचित पदार्थ; जैसेफूल, फल, दूध, दही, मिष्ठान्न इत्यादि का प्रयोग नहीं करते हैं, इसके विपरीत बीसपंथ के अनुयायी ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं समझते। तारणपंथ के गुरु तारणस्वामी हुए। यह कुछ ही स्थानों तक सीमित है। इस परंपरा में मूर्तिपूजा के स्थान पर मंदिरों में शास्त्रपूजा का विधान है। श्वेतांबर संप्रदाय और उसके भेद-प्रभेद
श्वेतांबर संप्रदाय भी प्रमुख तीन पंथों में विभक्त है(1) मूर्तिपूजक (2) स्थानकवासी (3) तेरापंथ __ मूर्तिपूजक संप्रदाय में प्रायः साधु मुख पर पट्टी नहीं लगाते हैं। मंदिरों में चंदन, सचित्त पुष्पादि से पूजा-अभिषेक और प्रतिमाओं का श्रृंगार मूर्तिपूजक संप्रदाय में प्रचलित है। पूरे देश के, विशेषकर माउंट आबू, रणकपुर, पालीताना आदि तीर्थों के इनके जैन मंदिरों का उत्कृष्ट वास्तुकला सौंदर्य पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। स्थानकवासी संप्रदाय में साधु मुख पर कपड़े की चौड़ी पट्टी लगाते हैं। यह परंपरा मंदिर एवं मूर्तिपूजा आदि पर विश्वास नहीं रखती। इनके मात्र स्थानक होते हैं। इसी प्रकार तेरापंथ के साधु भी मुख पर लंबी पट्टी लगाते हैं। मंदिर, मूर्तिपूजा आदि पर ये भी विश्वास नहीं रखते, किंतु कुछ सैद्धांतिक मतभेदों के कारण ये स्थानकवासी से अलग हैं।
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सारा राष्ट्र जैन है "केवल मैं ही नहीं सारा राष्ट्र जैन है, क्योंकि हमारा राष्ट्र अहिंसावादी है और जैन धर्म अहिंसा में विश्वास रखता है। जैन धर्म के आदर्श के रास्ते को हम नहीं छोड़ेंगे।"
-श्रीमती इंदिरा गाँधी (फरवरी 1981, संसद में एक प्रश्न
__के उत्तर में जारी वक्तव्य)
जैन धर्म-एक झलक