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शुद्धिपूर्वक जैन धर्म का पालन करने में ये चारों वर्ण भाई-भाई के समान हैं। इस श्लोक को यहाँ उद्धृत करके मैं अपनी इस चर्चा को यहीं सीमित करता हूँ
विप्रक्षत्रियविट्शूद्राः प्रोक्ताः क्रियाविशेषतः।। जैनधर्मे पराः शक्तास्ते सर्वे बान्धवोपमाः॥ ( 7/142) इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि जैन धर्म में मूलतः जातिवाद का कोई स्थान नहीं है। यह एक विश्वबंधुत्व की भावना से युक्त समतावादी, सर्वकल्याणकारी आध्यात्मिक धर्म है तथा वे सभी लोग, जो स्वयं को शुद्ध आचार-विचारपूर्वक सच्चे सुख के मार्ग पर लगाना चाहते हैं; जैन धर्म का पालन करके जैन धर्मानुयायी बन सकते हैं। उन्हें अपनी जाति को लेकर चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। जैन धर्म और हिंदू
बहुत-से लोग आज भी जैन धर्म को हिंदू धर्म की शाखा बतलाकर उसे हिंदू धर्म के अंतर्गत ही मान लेते हैं। जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। हिंदुत्व, हिंदू धर्म, हिंदू जाति और हिंदू संस्कृति इन सभी संज्ञाओं तथा इनकी परिभाषाओं में काफ़ी अंतर है।
सिंधु नदी के सिंधु शब्द से हिंदू शब्द बना है। 'स' को 'ह' का उच्चारण करने वालों ने ऐसा किया। अतः हिंदू शब्द एक संपूर्ण सभ्यता और एक संपूर्ण संस्कृति का सूचक है जिसके आधार पर अपने भारत देश का 'हिंदुस्तान' नाम भी पड़ा और भाषा का नाम भी 'हिंदी' आया। इस आधार पर हिंद देश की सभी सभ्यताएँ हिंदू ही हैं। जैन धर्म इसी हिंद देश का मूल धर्म रहा है। इसके अनुयायियों ने इसी संस्कृति को हमेशा संरक्षण दिया, पालन किया और बढ़ाया। इसी संस्कृति का नाम हिंदू संस्कृति पड़ गया। अतः इस दृष्टि से निश्चित रूप से जैन संस्कृति हिंदू संस्कृति ही है।
अब प्रश्न है हिंदू धर्म, जाति और हिंदुत्व का। भारत में प्राचीन काल से दो धाराएँ एक साथ बह रही हैं- श्रमण और वैदिक। पहले श्रमण धारा में सिर्फ जैन ही आते थे, बाद में बौद्ध धर्म को भी श्रमणों में सम्मिलित मान लिया गया। बहुत पहले तक हिंदू धर्म कोई पृथक् धर्म नहीं था। धर्म थे- वैदिक, वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध, जैन इत्यादि। कालांतर में कुछ कट्टरपंथियों ने हिंदू धर्म का अर्थ किया- वैदिक। अब हिंदू एक संस्कृति होने के साथ-साथ एक धर्म, एक दर्शन, एक जाति भी कही जाने लगी। इस प्रकार वैदिक परंपरा को न मानने के कारण जैन और बौद्ध दोनों ही अवैदिक अर्थात् अ-हिंदू धर्म माने गए। ____कालांतर में कुछ राजनैतिक संगठनों ने धर्म की स्वार्थपूर्ण व्याख्याएँ की और मुसलमानों के विरोध में हिंदूओं की संख्या बढ़ाने के लिए जैन और बौद्ध को भी इसी में गर्भित करने की रणनीति बनाई। इस समुदाय में सिख धर्म भी शामिल किया गया। कहने का तात्पर्य है कि व्याख्या यह की गई कि भारत में ईसाई और मुसलमानों के अलावा सभी हिंद हैं।
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जैन धर्म-एक झलक