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________________ जो वस्तु-विशेष जिस द्रव्य या गुण में है, वह अन्य द्रव्य या गुण रूप में संक्रमित नहीं हो सकती है। अन्यरूप संक्रमित नहीं होती हुई वह अन्य वस्तु-विशेष को परिणमित कैसे करा सकती है ? नहीं करा सकती है।" __इत्यादि कथनों से यह स्पष्ट है कि एक पदार्थ दूसरे पदार्थ का वास्तविक कर्ता नहीं होने के कारण प्रत्येक द्रव्य में अपना-अपना प्रत्येक कार्य अपनी-अपनी षट्कारकीय योग्यतारूप निश्चय/अभिन्न षट्कारकों से ही होता है। प्रश्न १२ : व्यवहार षट्कारकों का स्वरूप समझाते हुए उन्हें उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। उत्तर : सभी द्रव्यों के बीच में पारस्परिक अत्यंताभाव होने के कारण एक द्रव्य का अन्य द्रव्य के साथ वास्तविक षट्कारकीय संबंध नहीं बनने पर भी एक ही क्षेत्र में सभी एकसाथ रहते होने से उनके बीच में बननेवाले निमित्त-नैमित्तिक संबंध की मुख्यता से उनके बीच में भी पारस्परिक षट् -कारकीय संबंध कहा जाता है। इसे ही व्यवहार या भिन्न षट्कारक कहते हैं। यह पूर्णतया औपचारिक असद्भूतव्यवहारनय का विषय है। इसमें ये कारक पृथक्-पृथक् पदार्थों में घटित होते हैं। ___ जैसे 'कुम्भकार ने घड़ा बनाया' – इस कथन में कुम्भकार कर्ता है; घड़ा कर्म है; दंड, चक्र, चीवर आदि उसमें साधन होने से करण हैं; जल आदि भरने के काम में लेनेवाले के लिए बनाया, अत: वे सम्प्रदान हैं; टोकनी में से मिट्टी लेकर बनाया, अत: वह अपादान है। पृथ्वी के आधार पर घड़ा बनाया; अत: वह अधिकरण है। . ___ इसमें सभी सामग्री पृथक्-पृथक् होने से यह व्यवहार षट्कारक का उदाहरण है। जीव की शुद्ध-अशुद्ध पर्यायों पर इसे इसप्रकार घटित कर सकते हैंशुद्धपर्याय पर : जीव ने अरहंतदशा प्राप्त की' - इसमें जीव कर्ता है; अरहंतदशा कर्म है, घाति कर्मों का क्षय होने से वह प्रगट हुई है; अत: वे करण हैं; इससे भव्यजीव लाभान्वित होंगे, अत: वे सम्प्रदान हैं; शुक्लध्यान आदि में से अरहंतदशा प्रगट हुई, अत: वे अपादान हैं; चौथा काल, - षट् कारक/८७
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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