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________________ जैसे वर्तमान नवीन ज्ञान पर्याय पूर्व ज्ञान पर्याय के व्यय युक्त ध्रुव ज्ञान में से हुई होने के कारण वह व्यय सहित ध्रुव ज्ञानस्वभाव अपादान कारक है; कुंभकार टोकनी में से पिंडरूप मिट्टी लेकर घड़ा बनाता है; अत: टोकनी की वह पिंडरूप मिट्टी अपादान कारक है, इत्यादि। प्रश्न १०: अधिकरण कारक का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तर : “आधारोऽधिकरणं-क्रिया का आधार अधिकरण है अथवा जिसके आधार से कार्य होता है, वह अधिकरण कारक है।" जैसे ज्ञानरूप कार्य के होने में अनादि-अनन्त ध्रुव ज्ञानस्वभावी आत्मा; कुम्भकार द्वारा घड़ा बनाए जाने में पृथ्वी आदि ध्रुववस्तुएँ, इत्यादि। प्रश्न ११ : निश्चय कारकों का स्वरूप समझाते हुए, उन्हें उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। उत्तर :वास्तव में प्रत्येक पदार्थ द्रव्य-गुण-पर्यायवाला, उत्पाद-व्यय -ध्रुवता सहित, स्थाईत्व के साथ परिणमनशील होने के कारण उसे अपना कार्य करने में अन्य की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं होती है; अतः किसी भी पर-पदार्थ का किसी अन्य पर-पदार्थ के साथ कभी भी कारकता का संबंध नहीं बनता है। प्रत्येक पदार्थ स्वयं अपनी ही षट्कारकीय योग्यता से अपना कार्य करता है। इसे ही निश्चय षट्कारक या अभिन्न षट्कारक कहते हैं। .. इसमें छहों कारक उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक एक ही पदार्थ में घटित होते हैं। जैसे मिट्टी स्वतंत्रतया घड़े रूप कार्य को प्राप्त हुई होने से मिट्टी कर्ता और घड़ा कर्म है अथवा घड़ा मिट्टी से अभिन्न है; अत: मिट्टी स्वयं ही कर्म है। अपने परिणमन स्वभाव से स्वयं मिट्टी ने ही घड़ा बनाया है; अत: वह स्वयं करण है। मिट्टी ने घड़ारूप कार्य स्वयं अपने को ही दिया है; अत: वह स्वयं सम्प्रदान है। मिट्टी ने स्वयं अपनी पिंडरूप अवस्था को नष्टकर घड़ारूपकार्य किया है और स्वयं ध्रुवबनी रही; अत: वहीं अपादान है। मिट्टी ने अपने ही आधार से घड़ा बनाया है; अत: स्वयं अधिकरण है। . इसप्रकार निश्चय से छहों कारक एक ही द्रव्य में घटित हो जाते हैं। शुद्धोपयोग में लीन आत्मा स्वयं ही षट्कारकरूप होकर केवलज्ञान प्रगट करता है। इसमें वे इसप्रकार घटित होते हैं - - षट् कारक/८५
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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