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________________ प्रश्न २ : महावीराष्टक स्तोत्र का अर्थ लिखिए। at उत्तर : कविवर पण्डित भागचन्दजी द्वारा लिखित प्रस्तुत 'महावीराष्टक स्तोत्र' महावीर भगवान की स्तुतिपरक संस्कृत भाषा में निबद्ध एक प्रसिद्धतम स्तोत्र है। इसमें शिखरिणी छन्द के ८ पद्यों द्वारा भगवान महावीर स्वामी के गुणों का स्मरण किया गया है। इसमें सर्वज्ञता, वीतरागता आदि गुणों का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उनकी वाणी की वर्तमान में उपलब्धि बताते हुए, उन्हें आकस्मिक मिले हुए निरपेक्ष वैद्य बताकर हमारे नयन पथगामी होने की प्रार्थना की गई है। इसके प्रत्येक पद्य का अर्थ इसप्रकार है सर्वप्रथम इस पहले छन्द द्वारा वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी गुणों से संयुक्त भगवान महावीर स्वामी को अपने हृदय में विराजमान करने की भावना भाते हैं; जो इसप्रकार है — (संस्कृत पद्य शिखरिणी छन्द में और हिन्दी पद्य हरिगीतिका छन्द में निबद्ध हैं) यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचिता: । समं भान्ति ध्रौव्य - व्यय - जनि - लसन्तो ऽन्तरहिताः ॥ जगत्साक्षी - मार्ग - प्रकटन - परो भानुरिव यो । महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (नः) ॥ | १ || उत्पाद व्यय ध्रुवता सहित, चेतन अचेतन सकल जग । जिनके मुकुरसम ज्ञान में, युगपत् प्रकाशित रह पृथग् ॥ जो सूर्य सम शिवमार्गदर्शक, जगत साक्षीभूत हैं। वे नयन पथ से आ सदा, महावीर स्वामी उर बसें ॥ १ ॥ शब्दश: अर्थ : यदीये= जिनके, चैतन्ये=चैतन्य / केवलज्ञान में, मुकुर = दर्पण के इव = समान, भावाः = पदार्थ, चित् अचिता: = चेतन और अचेतन, समं= एकसाथ, भान्ति = झलकते हैं / प्रतिभासित होते हैं, ध्रौव्यव्ययजनि - लसन्तः = ध्रौव्य- विनाश और उत्पत्ति से सहित अन्तरहिता: = अन्तरहित/अनन्त, जगत्साक्षी = जगत के साक्षीभूत/ज्ञाता-दृष्टा, मार्गप्रकटनपर:=मोक्षमार्ग को प्रगट करने में तत्पर / प्रकाशित करनेवाले, भानुः = सूर्य के, इव = समान, यं: = जो, महावीरस्वामी महावीर भगवान, नयनपथगामी = नेत्रों के मार्ग में गमन करनेवाले / मेरे हृदय में प्रवेश करनेवाले / ..तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ४ , 警 -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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