SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उसने यह कार्य किस पर या किसमें किया? इसके लिए अधिकरण कारक का ज्ञान कराया है। कार्य की उत्पत्ति को लेकर इनके अतिरिक्त अन्य कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं होने के कारण, इन छह के अतिरिक्त अन्य कोई कारक नहीं होते हैं। इसीप्रकार इनसे ही कार्योत्पत्ति की समग्र जानकारी होती है; अत: इनसे कम भी कारक नहीं होते हैं। इसप्रकार कार्योत्पत्ति में ये छह कारक ही कार्यकारी हैं। प्रश्न ४:कारक तो आठ होते हैं। उनमें से यहाँ छह ही क्यों बताए जा रहे हैं; संबंध और संबोधन को क्यों छोड़ा जा रहा है ? उत्तर : वास्तव में कारक तो छह ही होते हैं। आठ तो विभक्तिआँ होती हैं; कारक नहीं। कारक तो कहते ही उसे हैं, जिसका क्रिया से सीधा संबंध हो। संबंध और संबोधन का क्रिया से कोई सीधा संबंध ही नहीं है। जैसे ऋषभदेव के पुत्र भरत का निर्वाण हुआ- इसमें निर्वाण होने रूप क्रिया के साथ ऋषभदेव का कोई/कुछ भी सीधा संबंध नहीं है। ऋषभदेव का संबंध तो भरत से है, निर्वाण होने से नहीं; अत: संबंध को कारकों में स्थान नहीं मिला। इसीप्रकार जिसे संबोधित किया जाता है, उसका भी क्रिया के साथ कोई/कुछ भी संबंध नहीं होता है। जैसे हे अर्ककीर्ति ! भरत का निर्वाण हो गया है। इसमें निर्वाण होने रूप क्रिया का संबोधित किए गए अर्ककीर्ति के साथ कुछ भी संबंध नहीं है; अत: संबोधन को भी कारकों में स्थान नहीं मिल सका है। इसप्रकार क्रिया के प्रति प्रयोजक कारक छह ही होते हैं। प्रश्न ५ : कर्ता कारक का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तर : "स्वतंत्रः कर्ता - जो स्वतंत्र रूप से/स्वाधीनता पूर्वक कार्य करता है, उसे कर्ता कहते हैं।” अथवा “य: परिणमति सः कर्ता - जो उस कार्य रूप परिणमित होता है, उसे कर्ता कहते हैं।' अहेतुक, सुनिश्चित भवितव्यता आदि के अनुसार जो उस समय उस कार्य रूप हुआ-सा लगता है, उसमें व्यापक होता है अथवा उस कार्य के होते - षट् कारक/८३
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy