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________________ पाठ ६ : षट् कारक प्रश्न १ : आचार्य कुन्दकुन्द का व्यक्तित्व-कर्तृत्व लिखिए। उत्तर : वर्तमानयुगीन वीतरागी निर्ग्रन्थ दिगम्बर परम्परा के पर्यायवाची, द्वितीय-श्रुत-स्कन्ध के आद्य प्रणेता आचार्य कुन्दकुन्द' अध्यात्मजगत के सर्वोपरि आचार्य हैं। अपनी कृतिओं के माध्यम से आत्मार्थी-जनों के हृदय में गहराई से प्रविष्ट हो जाने पर भी आपका जीवन-परिचय अभी भी उत्कण्ठा और जिज्ञासा का केन्द्र बना हुआ है। रत्नकरण्ड श्रावकाचार के श्लोक ११८ में चार दानों में प्रसिद्ध व्यक्तिओं के अन्तर्गत शास्त्रदान-दाता के रूप में कौण्डेश की प्रसिद्धि वर्णित है। इसकी प्रभाचंद्रीय टीका में इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है - ___ गोविंद नामक ग्वाले ने कोटर में स्थित शास्त्र की महिमा से अभिभूत होकर बाल्यावस्था से ही उसकी सुरक्षा पूर्वक पूजा-भक्ति करते हुए अवसर पाकर एक मुनिराज को उसे प्रदान किया था; फलस्वरूप वह अगले भव में कौण्डेश नामक बहुश्रुतज्ञानी मुनि हुआ। लगभग इस जैसी ही कथा 'पुण्यास्रव कथा कोश' और 'आराधना कथा कोश' में भी उपलब्ध होती है। ___ ऐसा घटित होना असम्भव भी प्रतीत नहीं होता है; क्योंकि करणानुयोग यह प्रतिपादित करता है कि पढ़ने, अर्थ समझने में असमर्थ होने पर भी जिनवाणी के प्रति विशिष्ट भक्ति, बहुमान, उसके माध्यम से कषायों की मंदता इत्यादि रूप परिणाम, ज्ञानावरणादि कर्मों के विशिष्ट क्षयोपशम में कारण होते हैं। 'ज्ञान-प्रबोध' के आधार पर उनके वर्तमान जीवन संबंधी कुछ उल्लेख इसप्रकार हैं मालवदेश वारापुर नगर के राजा कुमुदचंद्र' के राज्य में, अपनी धर्मपत्नी कुंदलता' के साथ कुंद श्रेष्ठी' नामक एक वणिक रहता था। उनके माघ शुक्ला पंचमी/वसंत पंचमी के दिन एक कुन्दकुन्द' नामक पुत्ररत्न तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/७८ - - तत्त
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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