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पाठ ५ : आत्मानुभूति और तत्त्व - विचार
प्रश्न १ : आत्मानुभूति का स्वरूप अर्थात् आत्मानुभवमय दशा का सर्वांगीण वर्णन कीजिए ।
उत्तर : ‘आत्मानुभूति' पद तीन शब्दों से मिलकर बना है - आत्मा, अनु और भूति । आत्मा=ज्ञानानन्द-स्वभावी अपना जीव तत्त्व, अनु=अनुसरण करके, भूति होनेवाली । ज्ञानानन्द-स्वभावी अपने भगवान आत्मा का अनुसरण करके प्रगट होनेवाली पर्याय आत्मानुभूति कहलाती है । अन्तरोन्मुखी वृत्ति द्वारा आत्म-साक्षात्कार / आत्मा के प्रत्यक्ष संवेदन की स्थिति आत्मानुभूति है । अपने प्रगट वर्तमान ज्ञान को मुख्य कर अपनी वर्तमानकालीन समस्त पर्यायों का पर से हटकर अपने त्रिकाली ध्रुव आत्मतत्त्व में लग जाना ही आत्मानुभूति है ।
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इसे आत्मानुभव, स्वसंवेदन, आत्मा का प्रत्यक्ष वेदन, शुद्धोपयोग, स्वरूपलीनता, आत्मलीनता, आत्मस्थिरता, निर्विकल्प सम्यक् रत्नत्रय इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
कविवर पण्डित बनारसीदासजी नाटक- समयसार की उत्थानिका में इसे इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
" वस्तु विचारत ध्यावतैं, मन पावै विश्राम । रसस्वादत सुख ऊपजै, अनुभौ याकौ नाम ||१७|| वस्तुस्वरूप का/ आत्मतत्त्व का विचार और ध्यान करने से मन विश्राम पा जाता है/स्थिर हो जाता है तथा आत्मिक रस का स्वाद लेने से सुख उत्पन्न होता है, उसे अनुभव कहते हैं।"
कविवर पण्डित दौलतरामजी छहढाला की छठवीं ढाल में आत्मानुभूति की प्रक्रिया, स्वरूप इत्यादि को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं"जिन परम पैनी सुबुधि छैनी, डारि अन्तर भेदिया । वरणादि अरु रागादि तैं, निज भाव को न्यारा किया ।। निजमाँहि निज के हेतु निजकर आपको आपै गह्यौ । गुण- गुणी ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय, मँझार कछु भेद न रह्यौ ॥८॥ तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ६८