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________________ __ अनादिनिधन सभी वस्तुएँ भिन्न-भिन्न अपनी-अपनी मर्यादा सहित परिणमित होती हैं। कोई किसी के अधीन नहीं हैं। कोई किसी के परिणमित कराने से परिणमित नहीं होती हैं। -मोक्षमार्गप्रकाशक न हि स्वतोऽसती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्यते।... न हि वस्तुशक्तयः परमपेक्षन्ते॥ -समयसार, ११६ से १२० गाथा पर्यंत की आत्मख्याति टीका के वाक्यांश इत्यादि आगम वाक्यों की सत्यता सिद्ध नहीं हो सकेगी। ४. निमित्त अनियत स्वभावी होने से किसी भी विवक्षित कार्य का नियत पुरुषार्थ सम्भव नहीं हो सकेगा। ५. निमित्त के समान कार्य नहीं होने से सदा निमित्तों पर आरोप-प्रत्यारोप होते रहने की स्थिति में वातावरण सदा अशांत, क्षुब्ध रहेगा। ६. परमुखापेक्षिता नष्ट नहीं होने से पुरुषार्थ करने का भाव जागृत नहीं हो सकेगा। ___ इत्यादि अनेक कारणों से निमित्त को वास्तविक कर्ता मानना उचित नहीं है। प्रश्न २५ : उपादान-निमित्त के इस प्रकरण को समझने से क्या लाभ है? उत्तर : उपादान-निमित्त के इस प्रकरण को समझने से सदा-सदा के लिए हानिओं की हानि होकर (हानिआँ नष्ट होकर) लाभ ही लाभ प्राप्त होते हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं - १. छद्मस्थ प्राणी सदा अनुकूल संयोगों की चाह करते रहते हैं। उन्हें पाने के लिए वे दीन-हीन बनकर दूसरों के सामने हाथ फैलाते रहते हैं, किसी के भी गुलाम बने रहते हैं। प्रस्तुत प्रकरण समझ में आ जाने पर उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि प्रत्येक प्राणी को अनुकूल संयोग स्वयं की उपादानगत योग्यता और शुभकर्मों के उदय की निमित्तता में प्राप्त होते हैं; तब यह दीन-हीन, पराधीन भिखारी वृत्तिओं को छोड़कर सद्भाव और सत्कर्म में प्रवृत्त होगा। जिससे जीवन सहज ही अन्याय, अनीति, असदाचार, अभक्ष्य-भक्षण आदि के त्यागमय न्याय, नीति, सदाचार-सम्पन्न, स्वस्थ, निराकुल हो जाएगा। - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/६६ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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