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________________ है, तब फिर निमित्त को उपादानगत कार्य का वास्तविक कर्ता मान लेने में हानि क्या है ? उत्तर : उपादानगत कार्य के समय निमित्त की उपस्थिति अनिवार्य होने पर भी; क्योंकि वह उपादानगत कार्य का वास्तविक कर्ता नहीं है; अत: उसे उसका वास्तविक कर्ता नहीं माना जा सकता है। यदि कोई अपनी अज्ञानतावश उसे उपादानगत कार्य का वास्तविक कर्ता मानने का दुराग्रह करता है, तो उसे निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ेगा - १. व्याप्य-व्यापक भाव की विद्यमानता में ही वास्तविक कर्ताकर्म संबंध स्थापित होता है। यह भाव एक पदार्थगत द्रव्य, गुण, पर्यायों में ही घटित होता है; पृथक् पदार्थों में नहीं। निमित्त उपादान से पृथक् होने के कारण उसमें व्याप्य-व्यापक भाव विद्यमान नहीं होने से वह उपादानगत कार्य का वास्तविक कर्ता कैसे हो सकता है ? २.“स्वतंत्रः कर्ता - कर्ता स्वतंत्र होता है।” “यः परिणमति सः कर्ता - जो उस कार्यरूप परिणमित होता है, वह कर्ता है।" - इन परिभाषाओं के अनुसार कर्ता स्वयं कार्यरूप से परिणमित होता है। निमित्त उपादानगत कार्यरूप से परिणमित नहीं होता है, तब फिर वह उसका वास्तविक कर्ता कैसे हो सकता है ? ३. निमित्त को उपादानगत कार्य का वास्तविक कर्ता मान लेने पर"जो जम्हि गुणे दव्वे, सो अण्णम्हि दुण संकमदि दव्वे। सो अण्णमसकंतो कह तं परिणामए दव्वं ॥ - -समयसार गाथा १०३ जीवकृतं परिणामं निमित्तमात्रं प्रपद्य पुनरन्ये । स्वयमेव परिणमन्तेऽत्र पुद्गलाः कर्मभावेन ॥१२॥ परिणममानस्य चितश्चिदात्मकै: स्वयमपि स्वकैर्भावैः। भवति हि निमित्तमात्रं पौद्गलिकं कर्म तस्यापि ॥१३॥ - पुरुषार्थसिद्धयुपाय सधै वस्तु असहाय जहाँ, तहाँ निमित्त है कौन ? .. ज्यों जहाज परवाह में, तिरै सहज बिन पौन ॥ _ - निमित्त-उपादान. दोहे - उपादान-निमित्त/६५ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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