________________
आप भाईजी' शब्द से सम्बोधित किए जाते थे। इस मनुष्य भव में . आप ५६वर्ष पर्यंत रहे। वि.सं. १९३३, आषाढ़ कृष्णा द्वादशी, दोपहर दो बजे आपने समाधिपूर्वक देह का त्याग किया।
क्षमाभावाष्टक में लिखित कविवर वृद्धिचंद्रजी के शब्दों में आपके समाधिमरण का दृश्य इसप्रकार है -
"रात रही दो पहर जब, यम ने डाला जाल। ता बंधन कूँ काटवै, दियो परिग्रह डाल॥ धर्मी कूँ बुलाई आप, आयु की चेताई। काल आन पहुँचोभाई, हम सिद्धसरणपाई है। वस्त्र दूरि डारी, केश हाथ से उपारी। पद्मासन कूँ धारी, बैठे तृण को बिछाई है। अब साँस की चढ़ाई, पहर चार तक पाई। तबै नवकार सुनाई, पास बैठे सबै भाई है। बारस की तिथि पाई, दुपैरो पै दो बजाई।
भाईजी पधारे, पर गति शुभ पाई है।" मंदसौर (म.प्र.) निवासी सेठ हजारीलालजी वाकलीवाल के पितामह सेठ जोधराजजी की हवेली में आपका समाधिमरण हुआ था। ___ आपकी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय मूलतया आपके पद्यात्मक साहित्य से प्राप्त होता है। आपके पदों में तर्क और चिंतन की प्रधानता है। रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों से अलंकृत आपके पद्य-साहित्य में विराट कल्पना, अगाध दार्शनिकता और सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विशेषताएँ विद्यमान हैं। ज्ञानी जीव किसप्रकार संसार में निर्भय होकर विचरण करते हैं; उनका अपना आचार-व्यवहार कैसा होता है इत्यादि विषयों का विश्लेषण करनेवाले आपके पदों में चिंतन की अथाह गहराइआँ विद्यमान होते हुए भी भावुकता रंचमात्र भी नहीं है।
वर्तमान में आपकी निम्नलिखित रचनाएँ उपलब्ध हैं१. महावीराष्टक स्तोत्र : इसमें शिखरिणी छन्द में निबद्ध आठ पद्यों द्वारा इस युग के अंतिम तीर्थनायक, वर्तमान शासनप्रवर्तक भगवान महावीर स्वामी की आलंकारिक संस्कृत भाषा में स्तुति की गई है।
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/२