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तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग-२
पाठ १: महावीराष्टक स्तोत्र ... प्रश्न १ : कविवर पण्डित भागचन्दजी का परिचय दीजिए। उत्तर : साहित्य-सेवी, श्रुत-आराधक, आत्म-साधक १९वीं शताब्दी के अंतिम चरण और २०वीं शताब्दी के प्रथम चरण संबंधी स्वनाम-धन्य विद्वद् परम्परा में कविवर पण्डित भागचन्दजी का प्रमुख स्थान है। ग्वालियर राज्य के अन्तर्गत ईसागढ़ के निवासी आप दिगम्बर जैनधर्म के अनुयायी,
ओसवाल जाति के छाजेड़ गोत्रीय नर-रत्न थे। . ... ___ कविवर वृद्धिचंदजी कृत क्षमाभावाष्टक के अनुसार आपका जन्म वि. सं. १८७७की कार्तिक कृष्णा तृतीया को हुआ था। मूल छन्द इसप्रकार है
अष्टादश सित्योत्तरे, कार्तिक वदि शुभ तीज।
ईसागढ़ को जन्म थो, भागचन्द गुनि बीज। संस्कृत-प्राकृत-हिन्दी भाषा के मर्मज्ञ विद्वान आप दर्शन-शास्त्र के विशिष्ट अभ्यासी थे। संस्कृत और हिन्दी – दोनों ही भाषाओं में काव्य रचना की अपूर्व क्षमता-सम्पन्न आपको शास्त्र-प्रवचन और तत्त्व-चर्चा में विशेष रस आता था। अपने जीवन पर्यंत आप प्रतिवर्ष सिद्धक्षेत्र सोनागिरी के वार्षिक मेले पर विशेषरूप से शास्त्र-प्रवचन द्वारा जिज्ञासु जनों को विशेष लाभान्वित करते रहे हैं। __ आर्थिक विपन्नता के कारण आपके जीवन का कुछ काल जयपुर में भी व्यतीत हुआ था। आपके द्वारा रचित पदों से आपके जीवन और व्यक्तित्व के संबंध में अनेकप्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। जिनभक्त होने के साथ ही आत्म-साधक होने से सांसारिक भोगों को निस्सार समझनेवाले आपका जीवन प्रतिदिन सामायिक आदि क्रियाओं, अनुष्ठानों से अनुप्राणित रहा है।
- महावीराष्टक स्तोत्र /