________________
तथा अध्यापक इच्छा और क्रिया - दोनों सम्पन्न होने से प्रेरक निमित्त कहलाते हैं। पुस्तक, प्रकाश आदि इन दोनों से रहित होने के कारण उदासीन निमित्त कहलाते हैं।
निमित्त-निमित्त में अन्तर डालने की अपेक्षा तो यह तथ्य यथार्थ है; पर जब हम उपादानगत अध्ययनरूप कार्य की अपेक्षा इन निमित्तों को देखते हैं तो सभी एक ही समान दिखाई देते हैं। जैसे पुस्तक और प्रकाश ने उदासीन निमित्त होने के कारण विद्यार्थी को प्रेरित नहीं किया है; उसीप्रकार माँ, दण्ड और अध्यापक ने भी प्रेरक निमित्त होने पर भी उसे प्रेरित नहीं किया है। यद्यपि अध्यापक आदि का सक्रिय योगदान अध्ययनरूपी कार्य में दिखाई देता है; तथापि उन्होंने विद्यार्थी के अध्ययन कार्य में कुछ भी नहीं किया है। यदि किया होता तो सभी विद्यार्थिओं का एक समान अध्ययन होता; परन्तु सभी का अध्ययन उनकी अपनी-अपनी योग्यतानुसार ही होता है, अध्यापक आदि के अनुसार नहीं। .. अध्यापक आदि तो सभी विद्यार्थिओं को प्रेरित करते हैं, कमजोर विद्यार्थिओं को तो और अधिक प्रेरित करते हैं; परन्तु उनकी प्रेरणा के अनुसार कार्य नहीं होता है, विद्यार्थिओं की अपनी योग्यता के अनुसार ही कार्य होता है। इससे स्पष्ट है कि प्रेरक निमित्त भी उपादानगत कार्य में कुछ भी नहीं करते हैं। प्रश्न २१:वास्तव में निमित्त-नैमित्तिक संबंध या निमित्त-उपादान संबंध कब, किसमें होता है ? उत्तर : वास्तव में निमित्त-नैमित्तिक संबंध या निमित्त-उपादान संबंध एक समयवर्ती दो पर्यायों के बीच होता है। उनके द्रव्य, गुणों या विभिन्न समयवर्ती पर्यायों के बीच नहीं होता है; परन्तु पर्यायें द्रव्य और गुणों से कथंचित् अभिन्न होने के कारण द्रव्य या गुणों के बीच भी ये संबंध होते हैं - ऐसा उपचार से कहा जाता है। आचार्य कुन्दकुन्ददेव समयसार ग्रन्थ में इसे इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
"जदि सो परदव्वाणि य, करेज णियमेण तम्मओ होज्ज । - जम्हा ण तम्मओ तेण, सो ण तेसिं हवदि कत्ता॥९९॥
उपादान-निमित्त/६१ -