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प्रश्न १७ : कार्य की उत्पत्ति के समय इन कारणों में से कौन सा कारण किसका नियामक है ?
उत्तर : प्रत्येक वस्तु में प्रतिसमय होने वाला प्रत्येक कार्य स्वभाव, पुरुषार्थ / विधि, काललब्धि, भवितव्य और निमित्त - इन पाँच समवायों के सांनिध्य में होता है। उक्त कारणों में से त्रिकाली उपादान स्वभाव का, अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय से युक्त द्रव्य पुरुषार्थ / विधि का, तत्समय की योग्यता काललब्धि और भवितव्य का तथा शेष उदासीन आदि पदार्थों की निमित्तता निमित्त कारण के नियामक हैं। प्रत्येक कार्य इन पाँचों की उपस्थिति में ही होता है।
प्रश्न १८ : प्रत्येक कार्य में निमित्त - उपादान की क्या स्थिति है ? उत्तर : प्रत्येक पदार्थ द्रव्य-शक्ति और पर्याय शक्ति- इन दो शक्तिओं से सहित है । द्रव्य-शक्ति/व्यापक नित्य और पर्याय-शक्ति व्याप्य/अनित्य होती है। मात्र द्रव्य - शक्ति के आधार पर कार्य की उत्पत्ति मानने से कार्य के नित्यत्व का प्रसंग आता है; अत: पर्याय-शक्ति युक्त द्रव्य-शक्ति को ही कार्य का नियामक कारण स्वीकार किया गया है।
यद्यपि प्रत्येक पदार्थ में कार्य होने के लिए पर्याय-शक्ति से युक्त द्रव्य - शक्ति ही पर्याप्त है; अन्य द्रव्यों की उसमें किंचित् भी आवश्यकता नहीं है; तथापि एकसाथ एक ही लोकाकाश में रहनेवाले अनन्तानन्त द्रव्य सतत परिणमनशील होने के कारण किसी एक परिणमन का किसी दूसरे परिणमन पर अनुकूलता का आरोप आ जाता है । जिस परिणमन पर, जिसकी अनुकूलता का आरोप आता है, उसे उस कार्य का निमित्त कह दिया जाता है। कार्य के होने में उपादान सदैव अनुरूप और निमित्त सदैव अनुकूल होता है; अतः सहकारी कारण सापेक्ष विशिष्ट पर्याय - शक्ति से युक्त द्रव्य - शक्ति ही कार्य की उत्पत्ति की कारण है । इसे ही भैया भगवतीदासजी अपने उपादान-निमित्त संवाद में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
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" उपादान निजशक्ति है, जिय को मूल स्वभाव । है निमित्त परयोग तैं, बन्यो अनादि बनाव ॥ ३ ॥ " कार्य की उत्पत्ति के पूर्व किसी पर अनुकूल होने का आरोप आना भी
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ५६