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________________ भावशक्ति के कारण ही भाव/पर्याय का, भाव/उत्पाद होता है - यह ज्ञान कराने के लिए इस उपादान का कथन किया जाता है। ६. द्रव्य-गुण त्रिकाल शुद्ध होने पर भी पर्याय अशुद्ध हो सकती है - इसका ज्ञान भी इस उपादान कारण से हो जाता है। ७. एक समयवर्ती प्रत्येक पर्याय भी एक समयवर्ती सत्, अहेतुक, पर से पूर्ण निरपेक्ष, स्वतंत्र है; उसे बदलने में किसी का, किसी भी प्रकार का प्रयास, कभी भी सफल नहीं हो सकता है; अत: पर्यायमात्र से दृष्टि हटाकर दृष्टि अपने ध्रुव स्वभाव पर केन्द्रित करना - यह ज्ञान कराने के लिए इस तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान का कथन किया जाता है। ___इत्यादि अनेक प्रयोजनों की सिद्धि के लिए कार्य के कारणों में तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान कारण को बताया गया है। प्रश्न १५ : निमित्त कारण के पर्यायवाची शब्द लिखते हुए, उसके भेदप्रभेद लिखिए। उत्तर : निमित्त कारण के कारण, प्रत्यय, हेतु, साधन, सहकारी, उपकारी, उपग्राहक, संयोगरूप कारण, ज्ञापक कारण, आश्रय, आलम्बन, अनुग्राहक, उत्पादक, हेतुकर्ता, हेतुमान, अभिव्यंजक इत्यादि अनेक पर्यायवाची नाम हैं। वस्तु की स्वरूपगत विविध विशेषताओं के कारण निमित्तों के अनेक भेद हो जाते हैं; जैसे - उदासीन और प्रेरक, अंतरंग और बहिरंग, नियामक और अनियामक, बलाधान और प्रतिबंधक, सद्भावरूप और अभावरूप इत्यादि। इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति से रहित द्रव्यों की निमित्तता उदासीन निमित्त कहलाती है; जैसे सिद्ध भगवान, धर्मादि द्रव्य आदि। इच्छावान, क्रियावान द्रव्यों की निमित्तता प्रेरक निमित्त कहलाती है; जैसे विद्यार्थी की पढ़ाई में अध्यापक, दण्ड आदि; ध्वजा के फड़कने में वायु आदि। इन्द्रिय आदि से ज्ञात नहीं होने वाले पदार्थों की नियामक निमित्तता अंतरंग निमित्त है; जैसे असमानजातीय मनुष्य आदि पर्यायों के रहने में मनुष्य नामक आयुष्क कर्म का उदय आदि। दिखाई देने वाले पदार्थों की निमित्तता बहिरंग निमित्त कहलाती है; जैसे मनुष्य आदि पर्यायों के रहने - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/५४ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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