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प्रश्न १३ : कार्य के कारणों में अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय विशिष्ट द्रव्य रूप क्षणिक उपादान को कारणरूप में बताने का प्रयोजन क्या है? उत्तर : कार्य के कारणों में अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय विशिष्ट द्रव्यरूप . क्षणिक उपादानको कारणरूप में बताने के कुछ मुख्य प्रयोजन इसप्रकार हैं१. उत्पाद-व्ययरूप क्षणिक सत् की स्वतन्त्र कार्य-क्षमता का ज्ञान कराने के लिए इस उपादान कारण को बताया जाता है, जिससे पर्यायशक्ति की स्वीकृति हो जाने पर उसमें परिवर्तन करने की बुद्धि समाप्त होकर उसे सहज स्वीकार करने का भाव जागृत होता है। २. नित्य द्रव्य, अनित्य पर्याय का कारण नहीं है। नित्य को अनित्य का कारण मानने पर नित्य निरन्तर विद्यमान होने से कार्य के भी निरन्तर होते रहने का प्रसंग प्राप्त होगा; जो कि वस्तु-व्यवस्था के विरुद्ध है। अनित्य कार्य का कारण भी अनित्य ही होना चाहिए; अत: अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय को अनन्तर उत्तर क्षणवर्ती पर्याय का कारण कहा जाता है। ३. प्रत्येक द्रव्य में भाव-अभाव शक्ति और अभाव-भावशक्ति विद्यमान होने से उसमें सतत भाव/विद्यमान पर्याय का अभाव/व्यय ही अभाव के भावरूप नवीन पर्याय का उत्पाद है अर्थात् पूर्व पर्यायरूप कारण का व्यय ही उत्तर पर्यायरूप कार्य का उत्पाद/उत्पन्न होना है। अनन्तर पूर्व पर्याय के अभावपूर्वक ही अनन्तर उत्तर पर्याय (कार्य) उत्पन्न होती है। वस्तु की अनादि-अनन्त इस व्यय-उत्पादरूप नियामक परिणमन-व्यवस्था का ज्ञान कराने के लिए अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय विशिष्ट द्रव्य को कारण कहा जाता है। ४. कार्य किस विधि/पुरुषार्थ से होता है; कार्य के एक समय पूर्व कारण कैसा होता है ? इसका ज्ञान कराने के लिए इस क्षणिक उपादान को कारण कहा जाता है। ५. कार्य के पूर्व ऐसा कारण अवश्य होना चाहिए, जिसका अभाव होकर कार्य उत्पन्न होता है अर्थात् व्यय-उत्पाद सापेक्ष पर्याय विशिष्ट द्रव्य में कारण-कार्यपने की सिद्धि होती है; यह बताने के लिए अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय विशिष्ट द्रव्य को कारण कहा गया है। ६. इससे द्रव्य की क्रम नियमित सुनिश्चित परिणमन-व्यवस्था का भी
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/५२ -