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________________ अनुकूलता का आरोप आता है, उसे निमित्त कारण कहते हैं। जिसके बिना वह विवक्षित कार्य नहीं होने पर भी जो स्वयं उस कार्यरूप नहीं होता है, उसे निमित्त कारण कहते हैं। प्रश्न ९ : उपादान-निमित्त को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हुए उपादान उपादेय और निमित्त-नैमित्तिक को भी उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए । उत्तर : मिट्टी के घड़ेरूप स्वयं मिट्टी परिणमित हुई है; अत: मिट्टी घड़े की उपादान कारण है । जिस समय मिट्टी घड़ेरूप परिणमित हो रही थी; उस समय चक्र, दण्ड, कुम्हार आदि अपने-अपने में परिणमित होते हुए भी घड़ेरूप परिणमित नहीं हो रहे थे; तथापि घड़े की उत्पत्ति के समय उन पर घड़े की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप आता है; अत: वे उसके निमित्त कारण कहलाते हैं। - मिट्टीरूप उपादान कारण की अपेक्षा घड़ेरूप कार्य को उपादेय तथा चक्र, दण्ड, कुम्हार आदि निमित्त कारणों की अपेक्षा घड़ेरूप कार्य को नैमित्तिक कहते हैं। यहाँ ' उपादेय' शब्द का प्रयोग 'ग्रहण करने योग्य' - इस अर्थ में नहीं हुआ है; वरन् उत्पन्न हुए कार्य को उपादान की ओर से देखे जाने पर उसे यह नाम मिला है। इसप्रकार एक ही कार्य उपादान कारण की अपेक्षा उपादेय और निमित्त कारण की अपेक्षा नैमित्तिक कहलाता है। सम्यग्दर्शनरूप कार्य पर ये इसप्रकार घटित होंगे - आत्मद्रव्य या श्रद्धागुण स्वयं सम्यग्दर्शनरूप से परिणमित होने के कारण, वे इसके उपादान कारण हैं तथा मिथ्यात्वादि कर्म का अभाव, सद्गुरु का उपदेश आदि स्वयं अपने में परिणमन करते हुए भी सम्यग्दर्शनरूप से परिणमित नहीं हुए हैं; तथापि सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के समय उन पर सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप आता है; अत: वे उसके निमित्त कारण कहलाते हैं। आत्मा या श्रद्धा-गुणरूप उपादान कारण की अपेक्षा सम्यग्दर्शनरूप कार्य उपादेय तथा मिथ्यात्वादि का अभाव, सद्गुरु का उपदेश आदि निमित्त कारण की अपेक्षा सम्यग्दर्शनरूप कार्य नैमित्तिक कहलाता है। इसप्रकार उपादान और निमित्त, कारण के भेद होने से प्रत्येक कार्य की उत्पत्ति के समय नियम से होते हैं तथा उपादान - उपादेय संबंध और निमित्तउपादान - निमित्त / ४७
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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