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नैमित्तिक संबंध कारण-कार्य संबंध के ही रूप होने से प्रत्येक कारणकार्य संबंध पर अनिवार्यरूप से घटित होते हैं । प्रत्येक कार्य नियम से उपादान की अपेक्षा उपादेय और निमित्त की अपेक्षा नैमित्तिक कहलाता है । प्रश्न १०: उपादान कारण के पर्यायवाची नाम लिखते हुए भेद-प्रभेद स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर : उपादान कारण के स्वद्रव्य, निजशक्ति, कारक-कारण इत्यादि पर्यायवाची नाम हैं। इस उपादान कारण के मूल में दो भेद हैं - १. त्रिकाली उपादान कारण और २. क्षणिक उपादान कारण ।
कार्यरूप परिणमित होने की त्रिकाल योग्यता - सम्पन्न वस्तु / द्रव्यगुणमय या ध्रौव्यात्मक वस्तु त्रिकाली उपादान कारण कहलाती है। जब भी कार्य होगा तब इसमें ही होगा - यह व्यवस्था त्रिकाली उपादान कारण करता है।
कार्य होने की क्षणिक योग्यता को क्षणिक उपादान कारण कहते हैं। इसके दो भेद हैं - १. अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय से विशिष्ट / संयुक्त द्रव्य और २. तत्समय की योग्यतारूप क्षणिक उपादान कारण।
प्रत्येक वस्तु उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक होने से उसमें सदा स्थाईत्व के साथ अनादि-अनन्त सुव्यवस्थित पर्यायों का प्रवाहक्रम भी चलता रहता है । प्रतिसमय पूर्व पर्याय का व्यय, उत्तर पर्याय का उत्पाद और पदार्थरूप से ध्रौव्य- इसप्रकार तीनों विद्यमान हैं। अनन्तर पूर्व क्षणवर्ती पर्याय का व्यय ही अनन्तर उत्तर क्षणवर्ती पर्याय के उत्पाद का नियामक कारण होने से उस व्ययरूप पर्याय को क्षणिक उपादान कारण तथा उस उत्पादरूप पर्याय को कार्य कहते हैं । 'आचार्य समंतभद्रस्वामी' अपने 'आप्तमीमांसा' नामक ग्रन्थ में इसे इसप्रकार व्यक्त करते हैं -
"कार्योत्पादः क्षयो हेतुर्नियमाल्लक्षणात्पृथक् ।
न तौ जात्याद्यवस्थानादनपेक्षाः खपुष्पवत् ।। ५८ ।। हेतु (क्षणिक उपादान कारण ) का क्षय नियम से कार्य का उत्पाद है। वे हेतु / व्यय और उत्पाद अपने-अपने लक्षण से पृथक्-पृथक् हैं। वे दोनों जाति आदि के अवस्थान से भिन्न नहीं हैं, कथंचित् अभिन्नरूप हैं। उनके सर्वथा भिन्न होने पर वे आकाश-कुसुम के समान अवस्तु सिद्ध होंगे।”
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/४८