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प्रश्न ४ : कार्य कैसे उत्पन्न होता है ?
उत्तर : प्रत्येक कार्य अपने सुनिश्चित अंतरंग-बहिरंग कारणों की उपस्थिति में ही उत्पन्न होता है। कारण के बिना कभी भी कोई भी कार्य उत्पन्न नहीं होता है। स्व पर कारण पूर्वक ही कार्य उत्पन्न होता है।
प्रश्न ५ : कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर : कार्य की उत्पादक सामग्री को कारण कहते हैं। कार्य जिस सामग्री के सांनिध्य में उत्पन्न होता है, उसे कारण कहते हैं। कार्य होने से पूर्व जिसका नियम से सद्भाव हो और जो किसी विशिष्ट कार्य के अतिरिक्त अन्य कार्य को उत्पन्न नहीं करे, उसे कारण कहते हैं। तात्पर्य यह है कि सहकारीकारण सापेक्ष विशिष्ट पर्यायशक्ति से सहित द्रव्य-शक्ति को कारण कहते हैं। प्रश्न ६ : कारण के पर्यायवाची लिखते हुए उसके भेद लिखिए। उत्तर : प्रत्यय, निमित्त, साधन, हेतु इत्यादि कारण के पर्यायवाची नाम हैं ।
इसके दो भेद हैं - उपादान कारण और निमित्त कारण। जिनागम में 'निमित्त' शब्द कहीं-कहीं कारणमात्र अर्थात् दोनों कारणों के अर्थ में आता है और कहीं-कहीं मात्र कारण के एक भेद निमित्त कारण के अर्थ में आता है; अतः प्रसंग देखकर अर्थ करना चाहिए। कहीं-कहीं उपादान कारण को अंतरंग कारण और निमित्त कारण को बहिरंग कारण भी कहा गया है।
प्रश्न ७ : उपादान कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो स्वयं कार्यरूप परिणमित होता है, उसे उपादान कारण कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ द्रव्य, गुण, पर्यायात्मक या उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक होने से वह प्रतिसमय नवीन-नवीन कार्यरूप परिणमित होता रहता है; वह उसका उपादान कारण कहलाता है । जो स्वयं समर्पित होकर कार्यरूप परिणत होता है, उसे उपादान कारण कहते हैं।
प्रश्न ८ : निमित्त कारण किसे कहते हैं ?
उत्तर : अपने में स्वयं सतत परिणमित होने पर भी जो उपादान संबंधी किसी विवक्षित विशिष्ट कार्यरूप परिणमित तो नहीं होता है; परन्तु उपादान संबंधी उस विवक्षित कार्य की उत्पत्ति के समय जिस पर तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ४६