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- पाठ ४: उपादान-निमित्त प्रश्न १ : विश्व का स्वरूप क्या है ? उत्तर :जाति की अपेक्षा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - इन छह तथा संख्या की अपेक्षा जीव अनन्त, पुद्गल अनंतानंत, धर्मअधर्म-आकाश एक-एक और कालद्रव्य लोकाकाश प्रमाण असंख्यात - इन अनंतानंत द्रव्यों के समूह को विश्व कहते हैं। स्थाई रहकर परिणमन करना, परिणमन करते हुए स्थाई रहना, विश्व के प्रत्येक द्रव्य का स्वभाव है। परिणमन को पर्याय या कार्य कहते हैं। - प्रत्येक द्रव्य स्वयं अनंत शक्ति-सम्पन्न होने से उसे अपने परिणमन/ कार्य में किसी अन्य के सहयोग की आवश्यकता नहीं होती है। “न हि स्वतोऽसती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्यते।...न हिवस्तुशक्त्यः परमपेक्षते - वस्तु में जो शक्ति स्वयं नहीं होती है, उसे अन्य के द्वारा किया जाना सम्भव नहीं है।...वस्तु की शक्तिआँ अन्य की अपेक्षा नहीं रखती हैं। (समयसार, गाथा ११६-१२० की आत्मख्याति टीका)।" - वस्तुस्वरूप की इस विशेषता के अनुसार वस्तु उसे ही कहते हैं, जिसे अपना कार्य करने के लिए अन्य का सहयोग नहीं लेना पड़ता है। वस्तु के द्रव्यगुण या ध्रौव्य अंश स्थाई रहकर जो कार्य करते हैं, उसे पर्याय या उत्पादव्यय कहते हैं। प्रश्न २ : कार्य किसे कहते हैं ? उत्तर : “कारणानुविधायीनि कार्याणि - कारण का अनुसरण कर होनेवाले परिणाम को कार्य कहते हैं।" अर्थात् वस्तु में होनेवाले प्रतिसमयवर्ती परिणमन को कार्य कहते हैं। प्रश्न ३: कार्य के पर्यायवाची नाम लिखिए। उत्तर : कार्य के काम, कर्म, अवस्था, हालत, दशा, परिणाम, परिणति, परिणमन, पर्याय, उत्पाद-व्यय, उपादेय, नैमित्तिक इत्यादि अनेक पर्याय - वाची नाम हैं।
-- उपादान-निमित्त/४५ -