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________________ होगा - इस प्रयोजन से मन्दकषायरूप कार्य करने का उपदेश देते हैं। जिन जीवों के आरम्भादि करने की इच्छा दूर नहीं हुई है; उन्हें चैत्यालय आदि बनवाने, पूजा - प्रभावना आदि करने का उपदेश देते हैं। इसी प्रकार जिनके आरम्भादि करने की इच्छा दूर हुई है; उन्हें पूर्वोक्त पूजादि कार्य और सभी पापकार्य छुड़ाकर महाव्रतादिरूप क्रियाओं का उपदेश देते हैं। जिनके किंचित् रागादि छूट गए हैं; उन्हें दया, धर्मोपदेश, प्रतिक्रमण आदि कार्य करने का उपदेश देते हैं। जिनके समस्त राग नष्ट हो गया है; उन्हें करने के लिए कुछ भी कार्य शेष नहीं होने से, उन्हें कुछ उपदेश भी नहीं है। इस अनुयोग की एक यह भी पद्धति है कि इसमें कषायी जीवों को कषाय उत्पन्न कराके भी पाप छुड़ाकर धर्म में लगाते हैं; जैसे पाप के फल में नरकादि के दुःख दिखाकर, भय कषाय उत्पन्न कर पाप छुड़ाकर; पुण्य के फल में स्वर्गादि के सुख दिखाकर, लोभ कषाय उत्पन्न कर धर्म कार्यों लगाते हैं। यह जीव इन्द्रिय-विषय, शरीर, पुत्र, धनादि के अनुराग से पाप करता है; धर्म से पराङ्मुख रहता है । इस अनुयोग में इन्द्रिय-विषयों को मरण, क्लेश आदि का कारण बतलाकर, उनके प्रति अरति कषाय भी कराते हैं; शरीर को अशुचि बताकर, उसके प्रति जुगुप्सा कषाय भी कराते हैं; पुत्रादि को धनादि का ग्राहक बताकर उनके प्रति द्वेष भी कराते हैं; धनादि को मरण, क्लेश आदि का कारण बताकर उनके प्रति अनिष्ट बुद्धि भी कराते हैं इत्यादि उपायों द्वारा विषयादि में तीव्र राग दूर होने से, उनके पापक्रिया छूटकर धर्म में प्रवृत्ति होती है। इसीप्रकार नामस्मरण, स्तुतिकरण, पूजा, दान, शीलादि से इस लोक में भी दरिद्रता आदि कष्ट दूर होते हैं; पुत्र -धनादि की प्राप्ति होती है इत्यादि निरूपण द्वारा लोभ उत्पन्न कराके भी धर्म कार्यों में लगाते हैं। इस अनुयोग की एक यह भी पद्धति है कि इसमें लौकिक दृष्टान्त, युक्ति, उदाहरण, न्यायवृत्ति आदि द्वारा समझाकर तथा अन्यमत के भी उदाहरण आदि देकर जीव जैसे पाप छोड़कर धर्म में लगे, वैसा अनेक युक्तिओं द्वारा वर्णन करते हैं। - शास्त्रों का अर्थ समझने की पद्धति / २५ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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