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समाप्ति पर सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति और व्युपरत-क्रिया-निर्वृत्ति नामक शुक्लध्यान द्वारा अघाति कर्मों का भी पूर्णतया क्षय हो जाने से वे अरहंत भगवान सर्वांग परिपूर्ण शुद्ध सिद्ध दशा को प्राप्त हो जाते हैं। द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म का सर्वदा के लिए सर्वथा अभाव हो वे अशरीरी, निष्कर्म, कृत-कृत्य, अठारह हजार शील के परिपूर्ण स्वामी हो जाते हैं। उनका परमौदारिक शरीर कपूर के समान विलीन हो जाता है। इंद्रादि आकर निर्वाण कल्याणक का महोत्सव मनाते हैं।
वेअरहंततीर्थंकर सकल परमात्मा अब निकल परमात्मा बनकर अनन्त काल पर्यंत ऐसी ही समग्र स्वात्मोपलब्धि रूप सिद्ध दशा में अतीन्द्रिय अव्याबाध सुख का भोगोपभोग करते हुए विराजमान रहते हैं।
इसप्रकार कल्याणकारी तीर्थंकरों के जीवनकाल में घटनेवाली पंच कल्याणकरूप में प्रसिद्ध ये पाँच घटनाएँ हमारे कल्याण में भी कारण बनें - इस भावना के साथ आचार्यों के स्वर में स्वर देते हुए आचार्यश्री वट्टकेर स्वामी-कृत मूलाचार की गाथा उद्धृत करती हूँ
“जा गदी अरहंताणं, णिट्ठिदट्ठाणं च जा गदी।
जा गदी वीदमोहाणं, सा मे भवदु सस्सदा ॥११६॥ जो गति अरहंतों की है, जो गति कृत-कृत्य सिद्धों की है, जो गति वीतमोह जिनों की है, वह शाश्वत गति सदा मेरी भी हो।" प्रश्न ४: भगवान महावीर के गणधरों की संख्या और नाम लिखते हुए उनके शिष्य-परिवार का उल्लेख कीजिए। उत्तर : भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में ११ गणधर थे। जिनके नाम इसप्रकार हैं- १. इंद्रभूति, २. अग्निभूति, ३. वायुभूति, ४. शुचिदत्त, ५. सुधर्म, ६. मांडव्य, ७. मौर्यपुत्र, ८. अकम्पन, ९. अचल, १०. मेदार्य
और ११. प्रभास। ___ उनके कर्मठ शिष्य परिवार में सामान्य केवली ७००, पूर्वधारी मुनिराज ३००, शिक्षक/उपाध्याय मुनिराज ९९००, विपुलमति मन:पर्यय ज्ञानी ५००, विक्रिया ऋद्धिधारी ९००, अवधिज्ञानी मुनि १३००, वादी मुनि ४०० – इसप्रकार कुल मुनिराजों की संख्या १४००० थी। चंदना आदि
तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/२००