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________________ "सदाशिवः सदाऽकर्मा, सांख्यो मुक्तं सुखोज्झितं । मस्करी किल मुक्तानां मन्यते पुनरागतिम् ॥ क्षणिकं निर्गुणं चैव, बुद्धो यौगश्च मन्यते । अकृतकृत्यं तमीशानो, मण्डली चोर्ध्वगामिनम् ।। सदाशिव मतवाले जीव को अनादि से ही सिद्ध दशारूप परिणमित, सदा निष्कर्म मानते हैं; सांख्यमतवाले सिद्ध भगवान को सुख से रहित मानते हैं; मस्करी मतवाले सिद्धों का पुनः संसार में आगमन मानते हैं। बौद्ध सभी पदार्थों को क्षणिक मानने वाले होने से सिद्धों को भी क्षणिक मानते हैं; नैयायिक और वैशेषिक सिद्ध दशा को बुद्धि आदि गुणों से रहित मानते हैं; ईश्वरवादी उन्हें अकृतकृत्य मानते हैं तथा मण्डली मतवाले उन सिद्ध भगवान को सदा ऊपर-ऊपर ही गमन करते रहनेवाला मानते हैं । " इन सभी मान्यताओं का निराकरण करते हुए सिद्ध भगवान का स्वरूप स्पष्ट करने के लिए ६८ वीं गाथा में ये विशेषण दिए गए हैं। इनका विश्लेषण इसप्रकार है - १. प्रत्येक जीव अनादि अनंत अपने परम पारिणामिक भाव की अपेक्षा द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म से रहित होने पर भी प्रतिसमयवर्ती पर्याय की अपेक्षा कोई भी जीव अनादि से ही इनसे रहित नहीं है; वरन् सभी इनसे सहित ही हैं। अनादि से ही जीव आत्मोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा ही निमित्तरूप में ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का अभाव कर सिद्ध हो रहे हैं - यह बताने के लिए 'अट्ठविहकम्मवियला - अष्टविध कर्मों से रहित ' विशेषण दिया है। २. यद्यपि सिद्ध भगवान सांसारिक सुख / सुखाभास / दुःख की अत्यल्प कमी और दुःख से पूर्णतया रहित हैं; तथापि अव्याबाध अतीन्द्रिय आत्मिक आनंद / अनाकुलता लक्षण सुख से सहित हैं - यह बताने के लिए 'सीदीभूदा - आनंदामृत का अनुभव करनेवाले शांतिमय' विशेषण दिया है। ३. यद्यपि सभी सिद्ध जीव सिद्ध दशा - प्राप्ति के पूर्व संसारावस्था में मोहादि कालिमा से सहित थे; परन्तु अब उससे विशेष प्रकार से और • तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / १८०.
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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