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________________ ८. सामान्य केवली : उपर्युक्त सभी संयोगों/परिस्थितिओं से रहित अनंत चतुष्टय आदि सम्पन्न जीव, सामान्य केवली हैं। इत्यादि अनेकानेक भेद बाह्य संयोगों, परिस्थितिओं की अपेक्षा इस गुणस्थान के हो जाते हैं। प्रश्न ६८ : सयोग केवली जिन नामक इस तेरहवें गुणस्थान का काल स्पष्ट कीजिए। उत्तर : आयु कर्म के उदय निमित्तक मनुष्य पर्याय में रहने की स्थिति की विविधता के कारण इस गुणस्थान के काल में भी विविधता हो जाती है। वह इसप्रकार है__इस गुणस्थान का जघन्य-काल यथायोग्य अंतर्मुहूर्त है; गर्भ काल सहित आठ वर्ष और आठ अंतर्मुहूर्त कम एक कोटि पूर्व वर्ष उत्कृष्टकाल है; इससे अधिक की आयु वाले इस गुणस्थान को प्राप्त नहीं कर पाते हैं तथा यथायोग्य अंतर्मुहूर्त में एक समय अधिक से लेकर उपर्युक्त उत्कृष्ट-काल में से एक समय कम पर्यंत सभी समय इसके मध्यमकाल-भेद समझ लेना चाहिए। प्रश्न ६९:सयोग केवली जिन नामक इस तेरहवें गुणस्थान का गुणस्थान की अपेक्षा गमनागमन स्पष्ट कीजिए। उत्तर : परिणामों की विविधता नहीं होने से आरोहण की सुनिश्चितता के कारण इस गुणस्थान का गमनागमन भी पूर्ण सुनिश्चित है। वह इसप्रकार है - गमन की अपेक्षा ये जीव नियम से अयोग केवली जिन नामक चौदहवें गुणस्थान में ही गमन करते हैं तथा आगमन की अपेक्षा एकमात्र क्षीणमोह नामक बारहवें गुणस्थान से ही यहाँ आते हैं। इसे संदृष्टि द्वारा इसप्रकार समझ सकते हैं- ... तेरहवें सयोग केवली गुणस्थान का गमनागमन गमन चौदहवें अयोग केवली गुण. में | तेरहवाँ सयोग केवली गुण.] आगमन बारहवें क्षीणमोह गुण. से . - तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/१७६ -
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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