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२. इस गुणस्थानवर्ती कोई द्रव्यलिंगी मुनि, श्रावक आत्मोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा यहाँ से आरोहण कर पाँचवें देशव्रत गुणस्थान को प्राप्त होते हैं। ३. इस गुणस्थानवर्ती कोई औपशमिक या क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि पुरुषार्थ की हीनता वश अवरोहण कर तीसरे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में या पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में आ जाते हैं। ४. इस गुणस्थानवर्ती कोई औपशमिक सम्यग्दृष्टि पुरुषार्थ की हीनता वश अवरोहण कर दूसरे सासादन गुणस्थान में भी चला जाता है।
आगमन की अपेक्षा : १. सादि या अनादि मिथ्यादृष्टि जीव आत्मोन्मुखी पुरुषार्थ द्वारा इस गुणस्थान में आ सकते हैं। २. इसी पुरुषार्थ द्वारा कोई तीसरे सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान से भी यहाँ आ सकता है। ३. देशविरत नामक पाँचवें और प्रमत्त-संयत नामक छठवें गुणस्थानवर्ती कोई जीव अपनी पुरुषार्थ-हीनता से अवरोहण कर इस गुणस्थान में आ सकते हैं। ४. उपशम श्रेणी के चारों गुणस्थानवर्ती मुनिराज मरण की अपेक्षा अवरोहण कर सीधे इस अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में आ जाते हैं। इस सम्पूर्ण गमनागमन को संदृष्टि द्वारा इसप्रकार समझ सकते हैं - अविरत सम्यक्त्व नामक चौथे गुणस्थान का गमनागमन द्रव्यलिंगी मनि ७वें में मरण की अपेक्षा ५ से ११वें
गुणस्थान पर्यंत किसी से भी द्रव्यलिंगी मुनि-श्रावक
-छठवें से | ५वें में
पाँचवें से चौथे अविरत सम्यक्त्व से औ., क्षायो. स. वाले तीसरे में || चौथे अविरत सम्यक्त्व में से मात्र औपश. स. वाले दूसरे में मिश्र नामक तीसरे से
औ., क्षायो. स. वाले पहले में (J-अना.-सादि मि. पहले से प्रश्न ३१ : पाँचवें देशविरत गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तर : इस गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए आचार्य नेमिचंद्र सिद्धा
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/१३६ -
गमन
आगमन