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________________ - मिथ्यात्व और कषायरूप परिणाम प्रतिसमय मंद-मंद होते जाने से उसके भावों में सहज ही धर्मानुराग प्रवर्तन प्रारम्भ हो जाता है; विषय-वासना मंद हो जाने से वह विषय-कषाय- पोषक कुदेव, कुगुरु, कुशास्त्र की सेवाभक्ति आदि रूप गृहीत मिथ्यात्व से हट जाता है; सदाचारयुक्त नैतिक जीवन हो जाने से अब उसके भोजन - पान आदि में अनंत स्थावरकायिक जीवों की हिंसामय आलू, प्याज आदि बहुघात युक्त पदार्थ; त्रसजीवों की हिंसामय द्विदल, चलित रस, अमर्यादित भोज्य सामग्री आदि त्रसघात युक्त पदार्थ; चाय, कॉफी, शराब आदि नशाकारक पदार्थ; जूँठा भोजन आदि अनुपसेव्य पदार्थ; शरीर के लिए हानिकारक अनिष्ट-कारक पदार्थ आदि पाँच प्रकार के अथवा इन्हीं के विस्ताररूप २२ प्रकार के अभक्ष्य पदार्थ नहीं होते हैं। वह अभक्ष्य का पूर्णतया त्याग कर देता है । - जिन कार्यों के करने पर पुलिस द्वारा पकड़े जाते हैं, सरकार दण्डित करती है, जेल में रहना पड़ता है- ऐसा कोई भी काला बाजारी आदि अन्यायमय कार्य वह नहीं करता है। इसीप्रकार समाज में निंदनीय, लोकनीति से विरुद्ध कार्य, वृद्ध माता-पिता की सेवा आदि नहीं करना आदि अनीतिमय कोई भी कार्य उसके जीवन में नहीं होते हैं। इसप्रकार गृहीत मिथ्यात्व, अभक्ष्य सेवन, अन्याय, अनीति, व्यसनाधीनता आदि के त्यागमय धर्मानुरागरूप प्रवृत्ति होना, प्रत्येक परिस्थिति में मर-पच कर भी तत्त्व समझने की तत्परता हो जाना, विशुद्धि लब्धि है । इसे नियमसार टीका में ‘उपशम लब्धि' और सागारधर्मामृत ग्रन्थ में 'शुद्धि लब्धि' कहा गया है। ३. देशना लब्धि : ज्ञानी गुरु द्वारा दिया गया छह द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थ, मोक्षमार्ग, सच्चे देव - शास्त्र - गुरु का स्वरूप, स्व-पर का विवेक, हितकारी - अहितकारी भावों का सदुपदेश, देशना है तथा उन उपदेशित पदार्थों का अपने प्रगट ज्ञान में धारण होना, देशना लब्धि है । श्रवण, ग्रहण, धारण - ये सभी इसी के अंग हैं। सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि के प्रकरण में पंडित टोडरमलजी देशनालब्धि को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं — चतुर्दश गुणस्थान / १३१
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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