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प्रथमोपशम/औप- क्षायोपशमिक | क्षायिक
शमिक सम्यक्त्व | सम्यक्त्व सम्यक्त्व १. यह सबसे पहले होता यह औपशमिक के बाद यह क्षायोपशमिक के
होता है। बाद होता है। २. इसमें एक बार ही त्रि- इसके लिए त्रिकरण आ- इसमें दो बार त्रिकरण करण परिणाम होते हैं। वश्यक नहीं हैं। परिणाम होते हैं। ३.इसमें सम्यक्त्व विरो- इसमें भी सातों प्रकृतिओं इसमें सातों की ही सत्ता धी सभी की सत्ता है। की सत्ता रहती है। नहीं होती है। ४. इसमें सातों में से किसी इसमें सम्यक्त्व प्रकृति इसमें उदय की संभाका भी उदय नहीं है। का उदय रहता है। वना ही नहीं है। ५. यह गिरकर तीसरे, यहगिरकर तीसरेयापहले यह अप्रतिपाती होने से दूसरे या पहले गुणस्थान गुणस्थान मेंही आसकता गिरता ही नहीं है। में भी आ सकता है। है। दूसरे में नहीं। ६. इसका उत्कृष्ट काल इसका उत्कृष्ट काल 66 इसका उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त है। सागर है। अनंत है। ७. इसमें सम्यक्त्वोत्पत्ति इसमें वह नहीं होती है। इसमें वह सतत होती के समय गुणश्रेणी निर्जरा
रहती है। होती है। ८. यह पूर्ण निर्दोष है। यह चल, मलिन, अ- यह पूर्ण निर्दोष है।
गाढ़ दोषों से युक्त है। ९. एक बार होकर छूट यह पल्य के असंख्या- यह कभी भी नहीं छूटता जाने पर पुन: असंख्यात तवें भाग बार छूट-छूट है। वर्ष बाद हो सकता है। कर पुनः हो सकता है। इत्यादि प्रकार से इन तीनों सम्यक्त्वों में पारस्परिक अंतर है।
- चतुर्दश गुणस्थान/१२७ -