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कड़वा, कषायला और चरपरा – इन पाँच विषयों में; घ्राण इंद्रिय के सुगंध और दुर्गंध - इन दो विषयों में; चक्षुइंद्रिय के काला, पीला, नीला, लाल और सफेद – इन पाँच विषयों में; कर्णेद्रिय के षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद – इन सात स्वररूप विषयों में और मन के विकल्परूप विषय में – इन २८ विषयों में प्रवृत्ति, इंद्रिय असंयम है।
इन छह प्रकार के प्राणी-असंयम और छह प्रकार के इंद्रिय-असंयम - इसप्रकार बारह प्रकार के असंयम से विरक्त/प्रतिज्ञा पूर्वक त्याग करने वाला नहीं होने से यह अविरत/असंयत कहलाता है। . ___ अविरत होने पर भी वीतरागी सर्वज्ञ भगवान द्वारा बताए गए पदार्थों का श्रद्धानी, समीचीन दृष्टिवाला, हेयोपादेय ज्ञान-सम्पन्न, स्वात्मदर्शी, आत्मानुभव-सम्पन्न होने से सम्यग्दृष्टि कहलाता है। __ आत्मिक अतीन्द्रिय आनंद-रस का आस्वादी यह आत्मानंद को ही परमसुखमानने आदि समीचीन श्रद्धा के कारण सम्यग्दृष्टि है; तथापि अपने पुरुषार्थ की हीनतावश अप्रत्याख्यानावरण कषायोदय की निमित्तता में हिंसादि और इन्द्रियविषयादि का त्याग नहीं कर पाने से अविरत है।
अप्रत्याख्यानावरण शब्द अ, प्रत्याख्यान और आवरण - इन तीन शब्दों से मिलकर बना है। अ-नहीं अथवा ईषत्/थोड़ा, प्रत्याख्यान त्याग, आवरण आच्छादन/ढ्कना अर्थात् थोड़े से भी त्याग/देश संयम को भी ढ़कने वाली कषाय अप्रत्याख्यानावरण है। जिसकी विद्यमानता में सकल-संयम तो दूर ही रहो; देश-संयम भी नहीं हो पाता है, वह अप्रत्याख्यानावरणकषायहै। इससे सहित सम्यग्दृष्टि अविरत/असंयत सम्यग्दृष्टि कहलाता है। ___ यह अविरत सम्यक्त्वमय परिणाम जघन्य अंतरात्मा है। यह सम्यक्त्व मय परिणाम धर्मरूप है; संवर-निर्जरामय मोक्षमार्ग-सम्पन्न, भूमिकानुसार अतींद्रिय आनंदमय और अव्याबाध सुख का कारण है। विपरीत दृष्टि का अभाव हो जाने से यद्यपि यह दशा दृष्टिमुक्त कहलाती है; तथापि विशेष
-तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/१२४