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________________ प्रश्न १३ : एकमात्र औपशमिक सम्यग्दृष्टि के ही अधोपतन के समय यह गुणस्थान क्यों बनता है ? अन्य के क्यों नहीं बनता है ? - उत्तर : यह गुणस्थान एकमात्र औपशमिक सम्यग्दृष्टि के ही अधोपतन के समय बनता है, अन्य के नहीं; इसके कुछ कारण इसप्रकार हैं१. क्षायिक सम्यग्दृष्टि के यह नहीं बनने का कारण यह है कि इसके उस अनंतानुबंधी कर्म-प्रकृति की सत्ता ही नहीं होने से उसका उदय आना सम्भव ही नहीं है। क्षायिक सम्यक्त्व कभी नष्ट नहीं होता है; अतः अधोपतन के समय बननेवाला यह गुणस्थान इसके कभी हो ही नहीं सकता है। २. क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि के यह गुणस्थान नहीं बनने का कारण यह है कि यद्यपि इसके अभी अनंतानुबंधी कर्म - प्रकृति की सत्ता है; परन्तु उसका सदवस्थारूप अप्रशस्त उपशम होने के कारण, उस अनंतानुबंधी का इस क्षायोपशमिक सम्यक्त्व के समय उदय आना सम्भव ही नहीं है; अतः इसके भी वह सासादन गुणस्थान नहीं होता है। ३. एकमात्र औपशमिक सम्यग्दृष्टि के ही यह गुणस्थान बनने का कारण यह है कि इसमें अनंतानुबंधी कर्म-प्रकृति का अंत: करणरूप उपशम होता है; अतः उसका उदय हो सकता है। इसमें भी विशेषता यह है कि औपशमिक सम्यक्त्व के अंतर्मुहूर्त समय में से मात्र कम से कम एक समय और इससे आगे मध्य के सभी समयों सहित अधिक से अधिक छह आवली समय शेष रहने पर ही इस अनंतानुबंधी का उदय आने पर सम्यक्त्व की विराधना होकर यह गुणस्थान बनता है। इससे अधिक समय शेष रहने पर अकेले अनंतानुबंधी का उदय नहीं आने से अधोपतन के समय भी यह गुणस्थान नहीं बनता है । इसप्रकार एकमात्र औपशमिक सम्यक्त्व के समय ही यह स्थिति बन पाने के कारण उसे ही यहाँ बताया गया है; अन्य को नहीं । - औपशमिक सम्यक्त्व से भी सामान्यत: प्रथमोपशम सम्यक्त्व ही ग्रहण किया जाता है; परन्तु कषाय- प्राभृत चूर्णि सूत्र के कर्ता आचार्य यतिवृषभदेव प्रथमोपशम और द्वितीयोपशम-दोनों ही सम्यक्त्वों को ग्रहण करते हैं । • तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २ / ११२
SR No.007197
Book TitleTattvagyan Vivechika Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana Jain
PublisherA B Jain Yuva Federation
Publication Year2008
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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