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पहले मिथ्यात्व गुणस्थान का गमनागमन द्रव्यलिंगी मुनि – सातवें में -
-छठवें से द्रव्यलिंगी श्रावक-मुनि – पाँचवें में -
-पाँचवें से
चौथे से . चौथे में & सादि मिथ्यादृष्टि – तीसरे में-||||
-तीसरे से
-दूसरे से पहला मिथ्यात्व गुणस्थान भारत इसप्रकार परिणामों की विचित्र विविधता के कारण गमनागमन में विविधता हो जाती है। प्रश्न १२ : दूसरे सासादन सम्यक्त्व गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट कीजिए। उत्तर : आचार्यश्री नेमिचंद्र-सिद्धान्त-चक्रवर्ती इस गुणस्थान का स्वरूप स्पष्ट करते हुए गोम्मटसार जीवकाण्ड ग्रन्थ में लिखते हैं - "आदिमसम्मत्तद्धा, समयादो छावलि त्ति वा सेसे। अणअण्णदरुदयादो, णासियसम्मोत्ति सासणक्खो सो॥१९॥ सम्मत्तरयणपव्वयसिहरादो मिच्छभूमिसमभिमुहो। णासियसम्मत्तो सो, सासण णामो मुणेयव्वो ॥२०॥
प्रथमोपशम सम्यक्त्व या द्वितीयोपशम सम्यक्त्व के अंतर्मुहूर्त काल में से कम से कम एक समय और अधिक से अधिक छह आवली समय शेष रहते अनन्तानुबंधी संबंधी क्रोधादि चतुष्क में से किसी एक कषाय का उदय हो जाने से नष्ट हुआ सम्यक्त्व सासादन सम्यक्त्व कहलाता है।
सम्यक्त्वरूपी रत्न-पर्वत के शिखर से च्युत हो मिथ्यात्वरूपी भूमि के सम्मुखहुए, सम्यक्त्वको नष्ट करने वाले परिणाम सासन जानना चाहिए।"
इन गाथाओं में इस गुणस्थान का नाम सासन बताया गया है। सासन शब्द में स और असन-ये दो शब्द हैं। स-सहित, असन-गिरना अर्थात्
औपशमिक सम्यक्त्व से गिरती हुई दशा सासन है। अन्यत्र इसका नाम सासादन प्रसिद्ध है। इसमें भी स और आसादन-ये दोशब्द हैं। स-सहित,
आसादन विराधना अर्थात् औपशमिक सम्यक्त्व की विराधनामय परिणाम सासादन गुणस्थान है। इन परिणामों से सहित जीव सासन या सासादन सम्यग्दृष्टि कहलाता है।
- तत्त्वज्ञान विवेचिका भाग २/११०