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अप्रमत्त
चतुर्दश गुणस्थान/१०१ -
ऊर्ध्वगमन स्वभाव है.
इस चार्ट में मोह और योग के विस्तारमय ११ अशुद्धिओं से होने वाले १४ गुणस्थानों एवं किस गुणस्थान में कितनी और कौन-सी शुद्धि/अशुद्धि रहती है, यह दर्शाया गया है। पूर्ण निर्बंध |१४. अयोग केवली
पूर्णशुद्ध दशा
११ परम यथा. चा. १३. सयोग केवली
यथा. चारित्र योग १२. क्षीण मोह इन तीन गुणस्थानों में मात्र योग वाली अशुद्धि
यथा. चारित्र ११. योग ११. उपशान्त मोह
१० । | यथा. चारित्र १०. सं. सूक्ष्मलोभ १०. सूक्ष्म साम्पराय | संज्वलन सूक्ष्म लोभ कषाय एवं योग २ ९.संज्वल. मंदतम ९. अनिवृत्तिकरण | पूर्वोक्त+संज्वलन मंदतर कषाय छोड़, योग पर्यन्त सभी ३ | ८ अप्रमत्त ८. संज्वलन. मंदतर कषाय ८. अपूर्वकरण पूर्वोक्त+संज्वलन मंद कषाय छोड़, योग पर्यन्त सभी४
अप्रमत्त ७. संज्व. मंद कषाय ७. अप्रमत्तविरत | पूर्वोक्त+संज्वलन तीव्र कषाय छोड़, योग पर्यन्त सभी५
अप्रमत्त ६. सं. तीव्र कषाय प्रमाद ६. प्रमत्तविरत पूर्वोक्त+प्रत्याख्यानावरण कषाय छोड़, योग पर्यन्त ६
सकल संयम ५. देशविरत पूर्वोक्त+अप्रत्याख्यानावरण कषाय छोड़, योग पर्यन्त ७ ४ । देश संयम ४. अप्रत्याख्याना. आवरात ४. अविरत सम्यक्त्व | पूर्वोक्त+सम्यग्मिथ्यात्व छोड़, योग पर्यन्त सभी८ | ३. सम्यक् मिथ्या. ३. सम्यग्मिथ्यात्व | मिथ्यात्व +अनंतानुबंधी कषाय छोड़, योग पर्यन्त सभी ९ २. अनंतानुबंधी मिथ्या- २. सासादन सम्यक्त्व मिथ्यात्व+अनंता. संबं.३ छोड़, योग पर्यंत सभी ९१/४ | १ ३/४ १. मिथ्यात्व
| दर्शन
१. मिथ्यात्व मिथ्यात्व आदि सभी ११ अशुद्धिआँ बंध के
नष्ट हुई गुणस्थान अशुद्धिआँ | गुणस्थानों में अशुद्धिआँसंख्या सहित
संख्या |
५.प्रत्याख्यानावर.
चलो रे भाई ! अपने वतन में चलें....
सम्यक्त्व
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२
अशुद्धि | प्रगट शुद्धि
कारण