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गोम्मटसार जीवकाण्ड : इसमें गुणस्थान, जीवसमास, पर्याप्ति, प्राण, संज्ञा, चौदहमार्गणा और उपयोग - इन बीस प्ररूपणाओं के माध्यम से जीव द्वारा किए गए काण्डों का २२ अधिकारों में विभक्त ७३३ गाथाओं द्वारा विस्तार से वर्णन किया गया है। गोम्मटसार कर्मकाण्ड : इसमें जीव की विविध विकृतिओं का निमित्त पाकर होनेवाली कर्मकी बंध, उदय, सत्त्व, उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण, उदीरणा, निधत्ति, निकाचित, उपशमरूप दश दशाओं का ९ अधिकारों में विभक्त ९७२ गाथाओं द्वारा वर्णन किया गया है। लब्धिसार : सम्यग्दर्शन की कारणभूत क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण नामक पाँच लब्धिओं का विस्तृत विवेचन इस ग्रन्थ में किया गया है। क्षपणासार : इसमें गुणस्थान-क्रमानुसार कर्मों के क्षय की प्रक्रिया का विस्तृत विवेचन है। त्रिलोकसार : इस ग्रन्थ में अधोलोक, मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक संबंधी विस्तृत जानकारी निहित है। ___ इन ग्रन्थों में से गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना चामुण्डराय अपर नाम गोम्मट के आग्रह पर षट्खण्डागम का संक्षिप्तसार लेकर की गई होने से यह ग्रन्थ 'गोम्मटसार' नाम से प्रसिद्ध हो गया है। इस ग्रन्थ पर मुख्यतया आगमशैली में लिखी गईं अध्यात्म की पोषक चार टीकाएँ उपलब्ध हैं१. अभयचंद्राचार्यकृत मंदप्रबोधिका नामक संस्कृत टीका। २. केशववर्णीकृत जीवतत्त्वप्रदीपिकानामकसंस्कृतमिश्रित कन्नड़ टीका। ३. इन नेमिचंद्र सिद्धान्त-चक्रवर्ती से भिन्न तथा इनके उपरान्त हुए नेमिचंद्राचार्यकृत जीवतत्त्वप्रदीपिका नामक संस्कृत टीका। ४. आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजीकृत सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नामक भाषा टीका। __ संसारी जीव के भावों का और कर्मों का परस्पर में घनिष्ठतम निमित्तनैमित्तिक संबंध होने के कारण, इस संबंध को जाने बिना विश्व-व्यवस्था का तथा वस्तु-व्यवस्था का यथार्थ ज्ञान होना अशक्य है। इस ज्ञान के
- चतुर्दश गुणस्थान/९५