________________
५१
श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
द्रव्य सर्वथा नित्य तथा कूटस्थ मान्यता हुई विलय । वस्तु स्वभाव परिणमन लख परिवर्त्तन देख न होता भय ॥
ॐ
पूजन क्रमांक ३
तत्त्वज्ञान तरंगिणी द्वितीय अध्याय पूजन
स्थापना
गीतिका
तत्त्व ज्ञान तरगिणी उत्साह पूर्वक मैं पढूँ । ध्यान कर चिद्रूप का आनंद से आगे बढूँ ॥ यह द्वितिय अधिकार करता मार्ग दर्शन भावमय । ध्यान निज सोर्वत्तम है राग द्वेष अभावमय ॥
ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर सवौषट् ।
ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः
ठः ।
ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद मानव
1
जब तक है राग रूप जल तब तक ही भाव मरण है. निज तत्त्व ज्ञान होते ही मिलती परमात्म शरण है ॥ चिद्रूप शुद्ध की महिमा अंतर में प्रभो सजाऊँ
ध्रुव धाम लक्ष्य में लेकर अनुभव के वाद्य बजाऊँ ॥ ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. ।
जब तक है राग भावना भव ज्वर न कभी जाएगा । निजगुण शीतल चंदन हो तो राग नहीं आएगा ॥