________________
५० तत्त्वज्ञान तरंगिणी प्रथम अध्याय पूजन जब द्रव्यत्व स्वगुण को जाना हुई पराश्रित बुद्धि विनाश। कर्ता बुद्धि विनष्ट हो गई हुआ हृदय में विमल प्रकाश॥ मूलभूल के कारण कलिका नहीं ज्ञान की खिलती है || मूलभूल जब क्षय हो जाती तब ज्ञानाम्बुज खिलता है। मोक्षमार्ग निष्कंटक अनुपम पुरुषार्थी को मिलता है | जब निर्बेर अद्रोह बुद्धि जगती है तब होता समभाव । मोह प्रबल से रहित साम्य भावों का होता है सद्भाव ॥ निज चैतन्य लोक ही शाश्वत क्षणिक विनश्वर है यह लोक |
अन्तर्नभ में अभी जगा लो ज्ञान भावना का आलोक || व्यसन मुक्त होने पर ही होता है सदाचरण प्रारंभ । अणुव्रत भी होता है उत्तम क्षय होता अनादि का दंभ || क्रम क्रम से आगे बढ़ता है पंच महाव्रत धरता है | निर्ग्रथेश महामुनि होता कर्मो की रज हरता है ॥ दर्शन ज्ञान गुणाधिराज महिमामय ऊर्जा का है स्रोत ।
महिमामय त्रैकालिक ध्रुव के अनुभव रस से ओत प्रोत॥ ॐ ह्रीं प्रथम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जयमाला पूर्णार्घ्य नि.।
आशीर्वाद परम शुद्ध चिद्रूप की सुनो एक आवाज । जो ध्याता चिद्रूप निज हो जाता जिनराज ॥
इत्याशीर्वाद :
भजन मोह मिथ्यात्व के भावों को क्षय करो चेतन । राग द्वेषादि के भावों को जय करो चेतन ॥ अविरति नाश करो शीघ्र ही संयम धारो । फिर कषायों को पूर्णतः विजय करो चेतन ॥ गुण अनंतों का कोष है तुम्हारे ही भीतर । कर्म फल चेतना को अब विलय करो चेतन ॥