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३३७ . श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान अन्तर्मनयदि निर्मल होतो ज्ञान सहज हो जाता है । परिणाम सरल हो जाते हैं आनंद बहुत हो जाता है ||
पूजन क्रमांक १८ तत्त्वज्ञान तरंगिणी सप्तदशम अध्याय पूजन
स्थापना
छंद गीतिका तत्त्व ज्ञान तंरगिणी अध्याय सप्तदशम पढ़ो । भाव पूर्वक ज्ञान के सोपान पर सविनय चढ़ो | शुद्ध निज चिद्रूप से ही प्रेम हो अनुराग हो ।
निराकुल सुख प्राप्ति के हित स्वयं से ही राग हो || ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवाषट् । ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद राधिका चैतन्य शक्ति का दाता जल ही लाऊं । जन्मादि रोग त्रय पर स्वामी जय पाऊँ ||
परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय ।
आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय || ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि. ।