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________________ ३३८ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी सप्तदशम अध्याय पूजन द्वंद बंद होता कषाय का पर में राग न होता है । चारों प्रत्यय का अभाव भी स्वयं शक्ति से होता है || चैतन्य शक्ति युत शीतल चंदन लाऊं । भव ज्वर पर अब अविलम्ब नाथ जय पाऊं ॥ . परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. । चैतन्य शक्ति के अक्षत शालि मनोहर । अक्षय पद के दाता अपूर्व अति सुन्दर ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. । चैतन्य शक्ति के पुष्प कामहर लाऊं । निष्काम भावना प्रतिक्षण प्रतिपल भाऊं ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. । चैतन्य शक्ति पाने को सुचरु चढ़ाऊँ । परिपूर्ण तृप्ति पाने को चरण बढ़ाऊं ॥ परिपूर्ण शुद्ध चिद्रूप महा महिमा मय । आनंद अतीन्द्रिय का समुद्र गरिमामय ॥ ॐ ह्रीं सप्तदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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