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३३६ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी षोडशम अध्याय पूजन इन्द्रिय जनित सौख्य के पीछे सौख्य अतीन्द्रिय खोया है। आनंदभासी जीवन जी चारों गति में रोया है | जैसे गहन समुद्र मध्य जो रत्न गिरे मिलता न कभी । त्यों मानव भव बार बार मिलता क्या अरे महान कभी || कुनर कुदेव त्रियंच नरक गति में पाए मर कष्ट अनंत। आत्म तत्त्व भावना अगर भाते तो होते भव दुखअंत॥ सप्त तत्त्व में श्रेष्ठ सार अविनश्वर अजर अमर आत्मा।
शुद्ध ज्ञान अवतार यही निज समयसार ध्रुव परमात्मा || ॐ ह्रीं षोडशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जयमाला पूर्णाऱ्या नि. ।
आशीर्वाद परम शुद्ध चिद्रूप का महाअर्घ्य शिवकार । सभी सिद्ध मोहित हुए पाकर बारंबार ॥
इत्याशीर्वाद :
भजन जप तप न मोक्ष देगा व्रत भी न मोक्ष देगा । समकित बिना कभी भी संयम न मोक्ष देगा | पूजन न सौख्य देगी दर्शन न सौख्य देगा । बिनेद विज्ञान चेतन कोई न सौख्य देगा | बिन आत्म ज्ञान कोई बिन आत्म भान कोई । बेकार ध्यान सारा कुछ भी न सौख्य देगा ॥ तत्त्वों का करो निर्णय शुद्धात्म का लो आश्रय । निर्मल स्वभाव के बिन कोई न मोक्ष देगा ॥ रागों का राग छोड़ो मिथ्यात्व मोह छोड़ो । जब तक है राग भीतर कोई न मोक्ष देगा ॥