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३० तत्त्वज्ञान तरंगिणी समुच्चय पूजन गुण अनंत प्रत्येक द्रव्य में हैं पर्याय अनंतानंत । मेरा जीव द्रव्य भी ऐसा गुण अनंतमय ध्रुव जीवंत ॥ भाव अक्षय अखंडित हैं अचल है मेरा स्वभाव | भव समुद्र अपार क्षय हो दूर हों सारे विभाव ॥ तत्त्व ं ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया । स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ॥ ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. । कामशर पीड़ा न हो प्रभु शील पुष्प महान हो । राग हो विध्वंस सारा स्वपद सिद्ध प्रधान हो ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया । स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ॥ ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. । क्षुधा का यह द्वंद मुझसे अब सहा जाता नहीं । स्वपद निर्मल शान्त के बिन अब रहा जाता नहीं ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया । स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ॥
ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. । मोह भ्रम तम नाश कर दूँ ज्ञान दीप प्रजालकर । मुक्ति के पथ पर चलूँ मैं आत्म तत्त्व संभाल कर ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया । स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ॥
ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. । धर्म ध्यानी शुक्ल धूप महान हो पावन परम । अष्टकर्म विनाश करने को करूँ मैं ध्यान श्रम ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया । स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ||
ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।