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२९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान शून्य नहीं है वस्तु अनंत गुणात्मक ठोस द्रव्य प्रत्येक । विश्व समान स्वतंत्र स्वयम्भू द्रव्यों में गुण बहु प्रत्येक ||
पूजन क्रमांक १ तत्त्वज्ञान तरंगिणी समुच्चय पूजन .
स्थापना
गीतिका तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिन शास्त्र को वंदन करूं । विषमताएँ नष्ट करके कर्म के बंधन हरूँ ॥ ज्ञानभावी भावना का सदा ही आदर करूं ।
शुद्ध निज चिद्रूप रस ही ह्रदय में हे प्रभु भरूं || ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।।
अष्टक
गीतिका जन्म मरण विनाश हित निज भाव श्रुत जल मिल गया। ह्रदय कमल प्रसिद्ध मेरा आज पूरा खिल गया ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया ।
स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया ॥ ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. ।
भवातप का ज्वर न हो अब शान्ति सागर हो ह्रदय । ज्ञान का अंबुज खिले प्रभु प्राप्त हो ध्रुव निज निलय ॥ तत्त्व ज्ञान तरंगिणी पा ह्रदय पुलकित हो गया ।
स्व परिणति को देखते ही ज्ञान उर में झिल गया || ॐ ह्रीं श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. ।