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२८ आचार्य ज्ञानभूषण भट्टारक पूजन विश्व अनादि निधन है इसका कभी नहीं होता है नाश। यह सर्वज्ञ कथन है मानो उर में धरो पूर्ण विश्वास || सम्यक्त्व ने दर्शन दिए शिव धार मिल गयी । संसार के किनारे पै ला मुझको बिठाया ॥ संयम की तरणी आ गई भव पार कराने । मैंने स्वशक्ति को जगा निज चरण बढ़ाया ॥ कुछ देर तो है किन्तु अब अंधेर नहीं है । सिद्धों का निमंत्रण मिला तो राग विलाया ॥ चिद्रूप शुद्ध प्राप्ति का अब समय आ गया । उपकार आपका न कभी भूल पाएंगें ॥ कल्याण के ही मार्ग पर हे सुमुनि लगाया · | आचार्य ज्ञान भूषण ने मुझको बताया ॥ आचार्य सकला कीर्ति श्री गुरु प्रधान थे । श्री भुवनादिकीर्ति भट्ट, महा ज्ञानवान थे ॥ थे शिष्य ज्ञान भूषण उनके बहुत प्रसिद्ध ।
रच तत्त्व ज्ञान तरंगिणि कार्य किया सिद्ध ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय जयमाला पूर्णार्घ्य नि. ।
- आशीर्वाद
दोहा विमल भावना ज्ञान की पावन परम अनूप । कृपा ज्ञान भूषण मिले पाऊं ध्रुव चिद्रूप ॥
इत्याशीर्वाद :
‘भजन आत्मा सौन्दर्य का वैभव मिला है आज मुश्किल से । नहीं कोई कसर बाकी दिखाई दी है मुश्किल से ॥ ज्ञान श्रद्धान से भूषित स्वगुण चारित्र है शोभित । अनंतों गुण का धारी यह मिला है आज मुश्किल से ॥