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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान एक ब्रह्म या प्रकृति पुरुष दो अथवा पांच द्रव्य हैं भ्रान्ति। एक एक कण कण स्वतंत्र है सूर्य चंद्र सम स्वतंत्र क्रान्ति॥
ज्ञान भावी धूप लाऊं शुक्ल ध्यान महान कर । कर्म वसु क्षय करूं तत्क्षण मोक्ष सौख्य महान वर || तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं || ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
ज्ञान भावी फल मिलेंगे आत्मा के ध्यान से । शीघ्र ही जुड जाऊंगा मैं शाश्वत निर्वाण से ॥ तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं || ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय मोक्षफल प्राप्ताय फलं नि. ।
ज्ञान भावी पद अनर्घ्य महान ही मैं पाऊंगा । अर्घ्य वसु विधि चढ़ाकर मैं आत्मा को ध्याऊंगा | तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं || ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य नि. ।
जयमाला
छंद (हेदीनबंधु) चैतन्य चंद्रिका ने मुझे आके जगाया । मिथ्यात्व मोह नींद को सम्पूर्ण भगाया ॥ सोया था मैं अनादि से विभाव के ही संग । अपने स्वभाव भाव से अब मुझको मिलाया ॥ मोहादि राग द्वेष सभी दूर हो गए । चिद्रूप शुद्ध भाव गीत आके सुनाया ॥ निधि भेदज्ञान की दी मुझे बड़े प्रेम से । परिणति विभाव दुष्टा को भी दूर हटाया ॥