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२६ आचार्य ज्ञानभूषण भट्टारक पूजन स्वयं सिद्ध है इसका कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता ईश नहीं । नहीं किसी के आधारित ना, शेष नाग आधार कहीं ||
सुगिरि चंदन से करूं मैं तिलक अपने शीष पर । भवातप का नाश करदूं विभावों से रीस कर ॥ तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. । अक्षती निज भाव लाऊं प्राप्त अक्षय पद करूं । भव समुद्र अथाह क्षय कर मुक्ति कामिनि को वरूं ॥ तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं । चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं ॥
ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. । निज स्वभावी पुष्प लाऊं काम की पीड़ा हरूं । प्राप्त कर निष्काम पद निज मोक्ष लक्ष्मी को वरूं ॥ तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं ॥ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. । ज्ञान भावी सुचरु लाऊं सरस अनुभवमयी शुद्ध । क्षुधा की मैं व्याधि नायूं क्योंकि मैं हूँ स्वयं बुद्ध || तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. । ज्ञान ज्योति प्रकाश पाकर मोह भ्रम तम को हरूं । ज्ञान रवि कैवल्य पाकर विषमताएं क्षयकरूं ॥ तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं । चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं ॥ ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।