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३१३ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
बनोगे निर्भार जब शुद्धात्मा का बोध होगा । ह्रदय में आनंद होगा शुद्ध ध्रुव आमोद होगा ॥
(१६)
कारणं कर्मबन्धस्य परद्रव्यस्य चिन्तनम् ।
स्वद्रव्यस्य विशुद्धस्य तन्मोक्षस्यैव केवलम् ||१६||
अर्थ- स्त्री पुत्र आदि पर द्रव्यों के चिन्तवन से केवल कर्मबंध होता है। और स्वद्रव्य विशुद्धचिद्रूप के चितवन करने से केवल मोक्ष सुख ही प्राप्त होता है। संसार में भटकना नहीं पड़ता ।
१६. ॐ ह्रीं कर्मबन्धकारणपरद्रव्यचिन्तनरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः । भावकर्ममलरहितनिरञ्जनस्वरूपोऽहम् |
हरिगीतिका
पर द्रव्य चिन्तन से सदा ही सतत होता कर्म बंध । शुद्ध निज चिद्रूप चिन्तन से न होता कर्म बंध | भटकना संसार में फिर सदा को हो पूर्ण बंद । मोक्ष सुख ही प्राप्त होता जीव रहता है अबंध || शुद्ध निज चिद्रूप चिन्तन ही जगत में सार है । राज्य धन परिवार आदिक सभी तो निस्सार है ॥१६॥
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्यं नि. ।
(१७) प्रादुर्भवंति निशेषा गुणाः स्वाभाविकाश्चितः ।
दोषा नश्यत्यो सर्वे, परद्रव्यवियोजनात् ॥१७॥
अर्थ- समस्त परद्रव्यों के सर्वथा त्याग से उन्हें न अपनानेसेात्मा से स्वाभाविक गुण केवल ज्ञान आदि प्रकट होते हैं। और दोषों का नाश होता है ।
१७. ॐ ह्रीं दोषनाशविकल्परहितशुद्धचिद्रूपाय नमः ।
निर्दोषप्रभुस्वरूपोऽहम् । हरिगीतिका