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________________ ३१४ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचदशम अध्याय पूजन द्रव्य आस्रव रहित हो जा भाव आस्रव छोड़कर । द्रव्य बंध विनाश कर तू निर्जरा के भाव कर ॥ पर द्रव्य सबके त्याग से गुण प्रगट होता स्वभाविक । ज्ञान के बल प्रगट होता दोष क्षय होते प्रथक ॥ यही है चिद्रूप शुद्ध महान चिन्तन का सुफल । आत्म सुख की प्राप्ति होती जीव हो जाता विमल ॥ शुद्ध निज चिद्रूप चिन्तन ही जगत में सार है । राज्य धन परिवार आदिक सभी तो निस्सार है ॥१७॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्यं नि. । (१८) समस्तकर्मदगेहादिपरद्रव्यविमोचनात् । शुद्धस्वात्मोपलब्धिर्या, सा मुक्तिरिति कथ्यते ॥१८॥ अर्थ- कर्म और शरीर आदि परद्रव्यों के सर्वथा त्याग से शुद्धचिद्रूप की प्राप्ति होती है। और उसे ही यतिगण मोक्ष कहकर पुकारते हैं । १८. ॐ ह्रीं समस्तकर्मदेहादिपरद्रव्यरहितशुद्धचिद्रूपाय नमः | विदेहस्वरूपोऽहम् । कर्म और शरीर आदिक द्रव्य पर के त्याग से । प्राप्ति होती शुद्ध निज चिद्रूप उचित प्रकाश से ॥ शुद्ध निज चिद्रूप चिन्तन ही जगत में सार है । राज्य धन परिवार आदिक सभी तो निस्सार है ॥१८॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्यं नि. । (१९) ' अतः स्वशुद्धचिद्रूपलब्धये तत्वविन्मुनिः । वपुषा मनसा वाचो परद्रव्यं परित्यजेत् ॥१९॥ अर्थ- इसलिये जो मुनिगण भले प्रकार तत्त्वों के जानकार है। स्व और पर का भेद पूर्ण रूप से जानते हैं। वे विशुद्ध चिद्रूप की प्राप्ति के लिये मन वचन काय से पर द्रव्य का सर्वथा त्याग कर देते हैं। उनमें जरा भी ममत्व नहीं करते ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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