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३०१ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
मोह के घन अगर हों तो उजाला कैसे आएगा । दुष्ट मिथ्यात्व है जब तक अंधेरा बढ़ता जाएगा ॥
शुद्ध चिद्रूप की ध्रुव ज्योति भव विभ्रम विनाशक है । मोह मिथ्यात्व तम हरती महा महिमा प्रकाशक है | शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं । परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोहन्धकार विनाशनाय दीपं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप की निज धूप मैंने आज पायी है । कर्म क्षय की सजग बेला स्वतः ही पास आयी है ॥
शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं । परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं !! ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप का ही ध्यान मैंने अब लगाया है । मोक्ष फल प्राप्ति का ही श्रम मुझे हे प्रभु सुहाया है ॥ शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं । परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय मोक्षफल प्राप्ताय
फलं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप का ही अर्घ्य हे प्रभु मैं चढ़ाऊंगा । कर्म वसु नाश करने को ध्यान अपना लगाऊंगा || शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं । परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं ॥
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्यं नि. ।