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३०० - श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचदशम अध्याय पूजन सरोवर ज्ञान का लहरा के मुझको ही बुलाता है । अतीन्द्रिय सौख्य का सागर ह्रदय में स्वयं आता है |
शुद्ध चिद्रूप का चंदन भवातप ज्वरविनाशक है । बिना श्रम सौख्य का दाता स्वपर ज्ञायक प्रकाशक है || शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं ।
परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय संसारताप विनाशनाय चंदनं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप के अक्षत स्व अक्षय पद प्रदायक हैं | परम शिव स्रोत हैं अनुपम मुक्ति सुख के विधायक हैं | शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं ।
परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं || ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप के ही पुष्प की निज गंध पावन है । काम की पीर क्षय कर्ता शील गुण की प्रकाशन है || शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं ।
परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं || ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय कामबाण विनाशनाय पुष्पं नि. ।
शुद्ध चिद्रूप के मनहर सुचरु ही मुझको भाते हैं । तृप्ति दायक परम सुखमय मार्ग ये ही बताते हैं | शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं ।
परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं || ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं नि. ।
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