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२९९ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान
दर्शनी भाव जब होता तभी आनंद आता है । विभावी बादली का भ्रम निमिष में नाश पाता है ॥
ॐ
पूजन क्रमाकं १६
तत्त्वज्ञान तरंगिणी पंचदशम अध्याय पूजन
स्थापना छंद गीतिका
तत्त्वज्ञान तरंगिणी अध्याय पंचदशम महान । शुद्ध निज चिद्रूप लाने का करो श्रम कुछ सुजान ॥ द्रव्य पर सब त्याग कर दो तभी होगा सहज प्राप्त ।
आस्रव से रहित होलो त्वरित होलो पूर्ण आप्त ॥
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ।
ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागम अत्र मम सन्निहित भव भव वषट् ।
अष्टक छंद विधाता
शुद्ध चिद्रूप की गंगा जन्म मरणादि दुख हरती । निजात्मा शुद्ध करती है अतीन्द्रिय सौख्य उर भरती ॥ शुद्ध चिद्रूप को ध्याऊं शुद्ध चिद्रूप उर लाऊं । परम निज ज्ञान धारा से प्रभो तत्काल जुड़ जाऊं ॥ ॐ ह्रीं पंचदशम अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. ।