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श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान... मुक्ति का मार्ग कठिन है पै सरल हो जाए । __ ऐसी कुछ युक्ति करो ज्ञान भाव जग जाए ॥
(१९) विशुद्धिः परमो धर्मः पुंसि सैव सुखाकरः ।
परमाचरणं सैव मुक्तेः पंथाच सैव हि ॥१९॥ अर्थ- यह विशुद्धि ही संसार में परम धर्म है। यही जीवों को सुख देने वाला, उत्तम चारित्र, और मोक्ष का मार्ग है। इसलिये जो मुनिगण विद्वान है जड़ और चेतन के स्वरूप के वास्तविक जानकार हैं। उन्हें चाहिये कि वे शुद्धचिद्रूप के चिन्तवन से प्रयत्नपूर्वक विशुद्धि की प्राप्ति कर । १९. ॐ ह्रीं ज्ञानसुखाकरस्वरूपाय नमः ।
चिद्रत्नाकरोऽहम । ....
चौपायी यह विशुद्धि ही परम धर्म है जीवों को सुखमय स्वधर्म है। यह उत्तम चारित्र मुक्ति पथ ऋषि मुनि विद्वानों का निजरथ ।।
परंम शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति श्रम। त्रिभुवन में ये ही सर्वोत्तम॥१९॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिमागमाय अयं नि. । .. (२०)
: - तस्मात् सैव विधातव्या प्रयतनेन मनीषिणा ।
प्रतिक्षणं मुनीशेन शुद्धचिद्रूपचिन्तनात् ॥२०॥ २०. ॐ ह्रीं चिद्रूपरत्नतेजस्वरूपाय नमः ।
ब्रह्मरत्ननिलयस्वरूपोऽहम् ।
.... चौपायी जड़ चेतन के जो ज्ञाता हैं वे चिद्रूप शुद्ध ध्याता हैं । जो चिद्रूप शुद्ध ध्याएँगें वे चिद्रूप शुद्ध पाएंगे ॥
परम शुद्ध चिद्रूप प्राप्ति श्रम। त्रिभुवन में ये ही सर्वोत्तम॥२०॥ . ॐ ह्रीं त्रयोदशम अधिकार समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. ।
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